संदेश
सावन - कविता - अतुल पाठक
आषाढ़ है बीता आया सावन हरियाली संग लाया सावन नारी को खूब लुभाया सावन प्रेमरूपी सागर में नहाया सावन हिना की खुशबू से महकाया सावन…
जन्म जन्म साथ निभाऊं - कविता - मयंक कर्दम
तुम मुझ में बस जाओ, मैं तुम में बस जाऊं। प्यार की इस डोरी में, जन्म जन्म साथ निभाऊं।। आंखों में मेरी खो जाओ, चु…
नारी तू है आदि, तू है अनन्या - कविता - मधुस्मिता सेनापति
नारी जो स्वयं अपने स्वार्थ भूलकर हर जिम्मेदारियों को निभाती हैं सलाम है उस खातून को जो घर को घर बनाती हैं.... जमाने भर की मस्ती…
यही तो जीवन व्यथा है - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
बस एक मुट्ठी देह मे आकाश जैसे मन संवरते। नयनों की कोठरी में गगन चुंबी स्वप्न पलते। हे मनुज दिग्भ्रमित ना हो यही तो जीवनव्यथा है। …
आया झम झम प्यारा सावन - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
आओ स्वागत करें आज हम, रिमझिम मधुर सावन मास रे। सूर्यताप आहत वसुधा जन, जलबिंदु बरसै घनश्याम रे। सावन कर पावस अभिनंद…
मोहे तेरी याद बहुत आये - कविता - चीनू गिरि
हे माधव , हे केशव मीरा के गिरधर , राधा के कान्हा , तेरी तो तू ही जाने , मेरा दिल तेरा दिवाना ! हे देवाधिदेव , हे वासुदेव मोहे…
पत्थर टूट जायेगा - कविता - शेखर कुमार रंजन
तू फेक पत्थर सीने पर, पत्थर टूट जाएगा टूटे हुए पत्थर के, अंश भी छूट जाएगा। टूटे हुए पत्थर को, छूकर जरा तू देख ले यह पत्थर या …
चाँद से गुजारिश - कविता - डॉ. रवि कुमार रंजन
ऐ चाँद उसे तु ढूंढ के ला ऐ मन को तु मन से बहला मन ही मन मे टूट चुका हु इसकी कोई ईलाज बता ऐ चाँद उसे तु ढूंढ के ला ऐ मन को तु मन…
वक्त - कविता - डॉ. ओमप्रकाश दुबे
वक्त वक्त है वक्त बड़ा सख्त है वक्त से ताकतवर दुनियां में कोई नहीं है वक्त जैसा छलिया भी कोई नहीं है वक्त रंक को राजा और राजा क…
मैं डर जाता हूं - कविता - सतीश श्रीवास्तव
रोज सबेरे जीवित पाकर मैं डर जाता हूं, खुद से हारा रोज शाम को मैं मर जाता हूं। रखवाले माली ने खाया देखो खेत यहां, देखा-देखी खेत स्…
अब ना सखी मोहे सावन सुहाए - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
अब ना सखी मोहे सावन सुहाए अब ना सखी मोरा मन मचलाये। अब तो सही मोहे पिया बिसराए। अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाये। अब नहीं करते पिया …
अरुणिम आशा की किरण - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
अरुणिम आशा की किरण, नव जीवन सौगात। चलें अभय पथ कर्म में, सहें सभी आपात।।१।। आएँगी पथ मुश्किलें, काटेंगे अपनत्व। …
अनमोल जीवन - कविता - मधुस्मिता सेनापति
जीवन अनमोल है, इसे व्यर्थ न जाने दीजिए। अपने लिए न सही परिवार के लिए संभालिए। दूसरा कैसा व्यवहार करता है न ख्याल कीजिए। आप अन्य…
अधूरी मोहब्बत - कविता - अतुल पाठक
नशा मोहब्बत का कभी न करना अधूरी रह जाती है मोहब्बत ये सोच लेना अधूरी मोहब्बत की दास्ताँ न पूछो दिल टूट जाता है कभी किसी से दिल न…
अभ्यास करने से कार्य आसान हो जाते है - लेख - शेखर कुमार रंजन
अपना मूल्य अपनी नजरों में ऊँचा रखिए। भले ही लोग कुछ भी कहें लेकिन आपको अपना आत्मविश्वास नहीं खोना है। आप लोगों को यह अवश्य पता ह…
मैंने भी भगवान देखा है - कविता - मयंक कर्दम
तुम में एक सच्चा इंशान देखा हैl या यूं कहूं, मैंने भी भगवान देखा हैll तेरी हंसी मूक को भी प्रेरणा देती हैl ओर सूरत अंधे को चमक…
कुछ अनकही बातें - कविता - मधुस्मिता सेनापति
आखीर ऐसा क्यों होता है कि धोखा हमें कोई एक देता है और भरोसा सबसे उठ जाता है........!! आखिर ऐसा क्यों होता है कि गलती किसी और …
नवभोर - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
लिखूँ हृदय की कलम से, गाथा नित नवभोर। पाकर प्रातः अरुणिमा, कर्म मग्न चहुँओर।।१।। नव ऊर्जा नवजोश से, कर्ययोग प…
सावन पर्व है धरती के सिंगार का - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
फुहारों के रूप में भक्ति और श्रृंगार मिश्रित अमृत बरसता है। इस महीने में सावन की फुहारें जीवन में नया रंग भर देती हैं। चारों…
प्यार की परिभाषा - आलेख - अतुल पाठक
प्यार की वैसे तो सही मायने में कोई परिभाषा नहीं बनी आजतक। लेकिन प्यार को कई रूपों में समझा जाता है। मातपिता का बच्चों के प्रति अस…
पोल - कविता - राजीव कुमार
मैं पोल हूँ, खड़ा हूँ, सड़क के किनारे, दोनों बाहें पसारे, ज़िन्दगी के उलझे, तारो को संभाले। दिन भर देखता हूँ …
गरीबों की गरीमा - कविता - शेखर कुमार रंजन
गरीबों गरीबी की गरीमा को जानों ये गरिमा हमारी गरीबी की है। ना मैं गरीब हूँ ना तुम गरीब हो कोई गरीब हैं, तो दिल गरीब है। …
सरिता - कविता - अतुल पाठक
सागर के आलिंगन में ही खुद को सौंप देती सरिता सागर बिन व्याकुल है रहती कतरा-कतरा होती सरिता स्वच्छंद जल सा मन उसका अविरत बहती…
प्यार एक एहसास - कविता - मधुस्मिता सेनापति
जीवन का है एक अनमोल हिस्सा, इसमें विश्वास होती है एक अहम किस्सा......!! हर किसी को होता है प्यार उनसे, जो होते हैं सच्चे दिल और …
तू बिखर गई जीवन धारा - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
तू बिखर गई जीवन धारा, हम फिर भी तुझे समेट चले। हम फिर से तुझे समेट चले। तू रोई थी घबराई थी, उठ उठ कर फिर गिर जाती थी, तू डा…
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