चाँद से गुजारिश - कविता - डॉ. रवि कुमार रंजन

ऐ चाँद उसे तु ढूंढ के ला
ऐ मन को तु मन से बहला
मन ही मन मे टूट चुका हु
इसकी कोई ईलाज बता
ऐ चाँद उसे तु ढूंढ के ला
ऐ मन को तु मन से बहला। 

सोच रहा हु आश लगाकर 
छोड़ गई क्यूँ मन बहलाकर
मन ही मन से आवाज यही है
दूर नहीं तु आस-पास यही है
ऐ चाँद उसे तु ढूंढ के ला 
ऐ मन को तु मन से बहला।

भेज रहा हु, चाँद तुझे मैं
देकर आना, पैगाम उसे ऐ
पहले  से तो, टूट चुका हु
बस आखिरी एक आश लगा रखा हू
ऐ चाँद उसे तु ढूंढ के ला
ऐ मन को तु मन से बहला। 

डॉ. रवि कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos