सावन पर्व है धरती के सिंगार का - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला


फुहारों के रूप में भक्ति और श्रृंगार मिश्रित अमृत बरसता है। इस महीने में सावन की फुहारें जीवन में नया रंग भर देती हैं।
चारों तरफ हरित श्रृंगार कुदरत का करिश्मा सा नजर आता है। भक्तों को अपने आराध्य भोलेनाथ का श्रृंगार करना सुहाता है ,तो नारियों को हरियाली तीज के अवसर पर सजना सवरना उनके सौंदर्य में चार चांद लगाता हुआ  सावन श्रृंगार की सौगात लेकर आता है। इस बहाने सखियां सज धज कर झूले झूलती हैं, नव युवतियों के मन की उमंगे हिलोरे लेती हुई अनायास ही खुशी महसूस कराता है ये सावन।

सावन के अंत में रक्षाबंधन पर्व पर भाई-बहन के पवित्र प्रेम का श्रृंगार सावन की ही तो देन है।
लेकिन अपना अपना नजरिया है और अपने अपने हालात भी।
किसी का सावन जिंदगी का श्रृंगार बन जाता है, तो किसी को तड़पाता है, रुलाता है, विरही हृदय तो सावन को जिंदगी का श्रृंगार मानने से रहा।
लेकिन एक दूसरा वर्ग भी है सावन को श्रृंगार नजर आने वालों का।
जब मानव मन प्रसन्न होता है, जब उसका तन मन यौवन पर होता है, तब वर्षा सुंदरी उसके मन को अनायास ही पुष्पित पल्लवित करती हुई प्रेम के आगोश में खींच लेती है।

चारों तरफ हरियाली, सुहावना भीगा भीगा मौसम ,,मन की ध्वनि तरंगों में अनंगो का जागरण जो कि प्राकृतिक  है एवं शाश्वत सत्य भी, इस सावन के महीने मे प्रस्फुटित होता है, सावन तब प्रेमियों के प्यार का श्रंगार बन जाता है।
उनका मन हिलोरे लेता है तो आत्मा नृत्य करती है। सावन अपने असली रूप में और भी अधिक लुभावना तब लगता है जब प्रियतम प्रेयसी मिलते हैं। तब सावन जिंदगी का श्रृंगार बन जाता है, यौवन का निखार बन जाता है।
बस फर्क है तो हालातों का, नजरिए का, कि किसी को सावन श्रृंगार नजर आता है तो किसी को सावन रुलाता है, तड़पाता है, दर्द दे जाता है।


सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)

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