आया झम झम प्यारा सावन - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

आओ  स्वागत करें आज हम,
रिमझिम मधुर सावन मास रे।
सूर्यताप  आहत  वसुधा  जन,  
जलबिंदु  बरसै   घनश्याम  रे। 

सावन कर  पावस  अभिनंदन, 
नभ   काली  घटा अभिराम रे।
साथ कँवरियाँ बोल डाक बम,
चले  काँवर  ले   शिवधाम  रे। 

चमके   बिजुरी घनघोर गगन,
टर्र टर    दादुर   मुस्कान    रे।
सावन मास बरस पावस जल,
चल नदी  पोखर  जलयान  रे।

शुष्क धरा तरु कानन .पतझड़,
सावन वृष्टि जलज   सौगात  रे। 
सुख दुख जीवन सरिता दो तट,
प्रवहमान   सतत  जल गात  रे।

शीतल मन्द  प्रवाह  पवन  नित,
कहीं  सूर्यातप , कहीं    छाँव  रे।
उमड़ घुमड़ करती भुवि  वारिस,
रिमरिझ    घन  घटा   फुहार  रे।

कुप्त विहरणी सजन मिलन बिन,
कूढ़े   नित  ज्येष्ठ   आषाढ़      रे।
तूफान प्रलय  चाहे   जलप्लावन,
हुई   सावन   लखि    दिलबाग रे। 

बर्षारानी       बनी        चंद्रिका,
सज    धज  सोलह शृङगार  रे।
प्रीत गमन व्याकुल नित चितवन,
मेघ    नयन  बरस  जलधार   रे।

वनपादप मृगद्विज खग  मानव,
प्रकृति मातु  मुदित धर हाथ  रे।
आया   सावन   देख  खुशनुमा,
नाचे   वन   मयूर  सब  साथ रे। 

मदमाती    सरिता    नवयौवन, 
जलधार     लहर   ऊफ़ान   रे।
जलप्लावन डूबे सब गाँव शहर,
महाकाल    बाढ़     इन्सान   रे।

नवरंग    भरा  सावन   प्रमुदित,
आलिंगन  सजन  अभिलाष  रे।
कुसमित मानस नित सजा स्वप्न,
मधुर   चन्द्र   मुखी  उल्लास  रे।     

जगी आश  चित्त साजन मिलन,
रति   सावन    देख   बहार    रे।
साजन  चकोर   मनुहार    प्रिये,
सज  धजी   सोलह   शृङ्गार   रे।

विरह  मधुमासी प्रियतम मिलन,
सावन   बन  आया  नवाश    रे।
मचल रही सखि स्वप्नलोक नित,
सुभग  जीवन  मधु अहसास  रे। 

आया  झम   झम  प्यारा सावन  
मादकता    भूमि      बरसात  रे।
हर  की  पौड़ी  जल  काँवर भर,
गंगाधर    शिरसि   कैलाश     रे। 

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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