वक्त - कविता - डॉ. ओमप्रकाश दुबे

वक्त वक्त है 
वक्त बड़ा सख्त है
वक्त से ताकतवर दुनियां में कोई नहीं है
वक्त जैसा छलिया भी कोई नहीं है
वक्त रंक को राजा और राजा को रंक बना देता है
वक्त अच्छे अच्छों को धूल चटा देता है...
मेरा तो अनुभव यह कहता है
वक्त उसके साथ कभी भी गद्दारी नहीं करता है
जो अपने मानवीय उसूलों से नहीं मुकरता है.
जो गलत रास्ते पर नहीं भटकता है
जो सिर्फ मानवीय कर्म ही करता है
जो जीवन में असफलता पर असफलता झेलता है
फिर भी हिम्मत नहीं हारता है
जो भगवान पर भरोसा रखता है
वक्त ही है वह जिसने
इतिहास के दर्पण में असली नकली चेहरा दिखा दिया है.
कंस और रावण जैसे आतताईयों का अंत कर दिया है
वक्त ने हमेशा उसका साथ दिया है
जिसने वक्त पर भरोसा किया है
जो सिर्फ मानवीय पथ पर चल दिया है
जिसने झूठी शान शौकत से अपने आप को बचा लिया है
जिन्होंने परिवार समाज और देशहित के लिए
अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया है
वक्त ने इतिहास के पटल पर स्वर्ण अक्षरों में उसका नाम लिख दिया है
जिसने मानवता का सर इंसानियत की अदालत में ऊंचा कर दिया है।


डॉ. ओमप्रकाश दुबे - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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