तू बिखर गई जीवन धारा - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला

तू बिखर गई जीवन धारा,
हम फिर भी तुझे समेट चले।
हम फिर से तुझे समेट चले।
तू  रोई  थी  घबराई  थी,
उठ उठ कर फिर गिर जाती थी,
तू डाल डाल हम पात चले।
हम फिर से तुझे समेट चले।
हम फिर भी  तुझे समेट  चले।
विपरीत दिशा का भंवर जाल,
नैनों  से अविरल अश्रु माल,
प्रति क्षण तड़पे दिन रात जले।
हम फिर भी तुझे समेट चले।
हम फिर से तुझे  समेट चले।
प्रियतम का उर में मधुर वास,
महसूस किया हर श्वांस श्वांस ,
फिर वीर पिता से प्रेरित हो ,
अब वीर सुता बनकर निकले।
हम फिर से तुझे समेट चले।
हम फिर भी तुझे समेट चले।
तू बिखर गई जीवन धारा,
हम फिर से तुझे समेट चले।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos