संदेश
नीति नवनीत - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जहाँ नहीं सम्मान हो , सुन्दर सोच विचार। बचे आत्म सम्मान निज, मौन बने आधार।।१।। निर्भय निच्छल विहग सम, उड़ें मंजिलें व्योम। नय…
इसीलिए गाँव लौट आये हैं - कविता - सैयद इंतज़ार अहमद
दिल में लिए एक आस,सपने नयन में थे, जब हम गए परदेस,अपनो को छोड़ के, गांव की याद आती थी, हर पल हमें वहां, रहने लगे बेफिक्र हम, मुँह…
लॉक डाउन 4 से जनता को सरकार से काफी कुछ उम्मीदें हैं - लेख - सुषमा दिक्षित शुक्ला
यह लॉक डाउन 4 एक नयी रूपरेखा के साथ 18 मई को आ रहा है । एक तरफ लोग कोरोना महामारी से डर रहे हैं दूसरी ओर बुनियादी सुविधाएं उपलब्…
क्या बताऊँ तुझे मेरे दिल की - ग़ज़ल - समुन्दर सिंह पंवार
क्या बताऊँ तुझे मेरे दिल की मुझे जरूरत है तेरे दिल की ऐसे चलती हो लचक -लचक कर जैसे मुरगाई हो कोई जल की क्या कहना है तेरी सादग…
मंजिलें - मुक्त - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जीवन्त तक बढ़ते कदम, चाहत स्वयं की मंजिलें, नित बेलगाम इच्छाएँ, निरत कुछ भी कर गुजरने, ख़ो मति विवेक नित अपने, र…
लॉक डाउन मे श्रमिकों की कमी के चलते उत्पादन शुरू करना बड़ी चुनौती हैं - लेख - सुषमा दिक्षित शुक्ला
कोविड-19 की महामारी के चलते लगा लॉक डाउन मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर के छोटे, मझोले एसएमई एवं बड़े उत्पादन स्रोतों पर संकट बनकर टूट प…
माँ - कविता - माधव झा
अँगुली पकड़ चलना सिखाया, हाथ - पाँव दोनो ही दवाया, अपनी ममता की छाया में, दूध - रोटी खाना भी सिखाया। भले ही उन्होंने कष्ट का…
छोड़ो भी - ग़ज़ल - अजय अंजाम
तुम क्या मुझसे प्यार करोगे,छोड़ो भी इस पागल को दिल दे दोगे, छोड़ो भी मेरा दिल है एक खिलौना,मालूम है तुम भी थोड़े दिन खेलोगे,छोड़ो भ…
हो जीवन उजियार - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मार्ग सुलभ है पाप का , बड़ा भयावह अन्त । दुर्गम राहें धर्म का , सत्य विजय भगवन्त ।।१।। कठिन परीक्षा सत्य की , बलि लेती…
हम भारत के नन्हे बालक - बाल कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
हम भारत के नन्हे बालक, दुनिया को दिखलाएंगे । मेरा भारत मेरा गौरव ,साबित करते जाएंगे । मात पिता औ गुरु की आज्ञा, पूरी कर…
अर्थ व्यवस्था - मुकक्त छन्द - भरत कोराणा
रोती सड़के सुनसान चौराहे खाली शाला राह देखती मजदूरी के लाले पड़ गए हालत सबकी खस्ता हो गई। पगड़ी आज टंगी पड़ी है महावर हाथ नही…
नारियों पर अत्याचार - मुक्त काव्य - बजरंगी लाल यादव
जो सदियों से करता आया है, तुझ पर अत्याचार। वह पुरुष नहीं बचा सकता तेरी इज्ज़त,ऐ!स्त्री लाचार। मुझे नहीं अब उस पांचाली जैसी जिन्दग…
थी राधा मन की अतिभोली - गीत - डॉ. राम कुमार झा
थी राधा मन की अति भोली, कान्हा पाँछे आयी दौड़ी, सखी सहेली मंद हास कर, कान्हा ! कान्हा! देखो बोली। कमलनैन मुस्कान …
महिलाओं द्वारा प्रदत्त टास्क चैलेंज बना सकारात्मक संदेश - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
हम कह सकते हैं कि इस समय कोरोनावायरस के कहर से उपजे भयंकर वातावरण में महिलाओं द्वारा टास्क चैलेंज के रूप में एक सकारात्मक संदेश…
हनुमान गाथा - गीत - समुन्दर सिंह पंवार
तेरे कैसा राम भक्त और नही हनुमान जी शंकर के अवतारी तेरी लीला बड़ी महान जी चैत की पूर्णमासी नै अवतार आपने धारा अंजनी माँ और पवन द…
छँटे रात्रि फिर सबेरा - दोहा - डॉ. राम कुमार झा ''निकुंज"
चहल पहल फिर से शुरु, जीवन नया प्रभात। सजी रेल से पटरियाँ , गमनागम सौगात।।१।। फँस जनता जज्बात में , नतमस्तक सरकार। कोरोना नित …
कुदरत की सीख - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
शायद कुदरत वर्तमान मानवीय प्रणाली को कुछ सिखाना चाह रही है । बहु भृमित हो चुकी मानवीय सभ्यता को,सुधार की राह पर लाना चाह रही ह…
मातु यश गाऊँ मैं - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
माँ हो तुम ममता का आँचल , माँ बैठ सदा सुख पाऊँ मैं । अश्रुपूरित भींगे नयनों से, तुझे नमन पुष्प चढ़ाऊँ मैं। तू जनन…
माँ - कविता - चीनू गिरि
माँ के लिए मैं क्या रचना लिखु वो खुद हमारी रचियता है माँ पर जितना भी लिख दू वो कम है ईश्वर की सबसे सुन्दर रचना माँ... धरती पर ई…
माँ - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जन्मा जिसने कोख़ से,करा पयोधर पान। ममतांचल में पालकर, साश्रु नैन मुस्कान।।१।। चारु चन्द्रिका शीतला, करुणा पारावार। …
माँ - कविता - भरत कोराणा
दुनिया का अनमोल शब्द जिसका सानी कोई नही। दुख की ढ़ाल सुख का छाता दोपहरी का निवाला जिसका सानी कोई नही । कितनी बरखा की रातों …
माता से बढ़कर दुनिया में कोई पूज्य नहीं है - कविता - सुषमा दिक्षित शुक्ला
माता से बढ़कर दुनिया में , कोई पूज्य नहीं है । माता की पावन ममता का , कोई मूल्य नहीं है । साक्षात वह लक्ष्मी ,दुर्गा , वही पार…
दो बूंद आँसुओं के - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
न दो बूंद आँसुओं के निकले , हैं कवलित हम अवसादन के , हैं मजदूर बने मजबूरी बस , जल कटे मरे हो जाएँ चिथड़े। है …
अब तो आजा प्यारे सावन - कविता - भरत कोराणा
अब तो आजा प्यारे सावन कितनी तपती दोपहरी में तलवे फूटे मजदूरों के नाक से बहती जर जर धारा होठों पर पपटी जम गयी है नहीं न…
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