जो पहले था आज नहीं है - कविता - बिंदेश कुमार झा

जो पहले था आज नहीं है - कविता - बिंदेश कुमार झा | Hindi Kavita - Jo Pahle Tha Aaj Nahin Hai - Bindesh Kumar Jha
आसमान आज भी बरस रहा है,
कल पानी बरसा रहा था,
आज आग है।
आसमान भी काला है,
चंद्रमा भी सफ़ेद चादर ओढ़ा होगा,
आज उसमें भी दाग़ है।
धरती का रंग नीला नहीं,
वह रंग कोई हरा रहा होगा।
आज एक घास में भी फ़रियाद है।
शेर भी इंसान के साथ रहता होगा,
उसने भी फलों का स्वाद लिया होगा।
आज वह भी लाशों से आबाद है।


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