हो जीवन उजियार - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


मार्ग सुलभ है पाप का , बड़ा   भयावह  अन्त । 
दुर्गम राहें  धर्म  का , सत्य  विजय    भगवन्त ।।१।।

कठिन परीक्षा सत्य की , बलि  लेती  अविराम। 
मिले न्याय सुन्दर सुखद, धर्म विजय सुखधाम।।२।।

सुखद प्रभा  होती दिवा , अन्त   रात्रि  घनघोर। 
पुनः धरा नव आश बन , अरुणिम मंगल  भोर।।३।।

रोग  शोक  हर  पाप को , आंजनेय    हनुमान। 
सियाराम   मंगल     करें ,  दें   वैभव   सम्मान।।४।। 

बजरंगी    हर  व्यथा को , दीन    हीन  मजदूर। 
भूखे    बच्चे   साथ  में , जाने   को     मजबूर।।५।।

छँटे  कालिमा   त्रासदी , हो  जीवन  उजियार।
कवि निकुंज अभिलाष मन,बने सुखद संसार।।६।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नई दिल्ली

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