चहल पहल फिर से शुरु, जीवन नया प्रभात।
सजी रेल से पटरियाँ , गमनागम सौगात।।१।।
फँस जनता जज्बात में , नतमस्तक सरकार।
कोरोना नित बढ़ रहा, चिन्ता है व्यापार।।२।।
कोराना से डर नहीं , भूख प्यास बस शोक।
बचें तभी तो जिंदगी , रोक पलायन रोक।।३।।
कैसे होगी अरुणिमा , फैलेगा जब रोग।
नहीं बचोगे तुम धरा , कौन करेगा भोग।।४।।
आत्म बली धीरज रखो , चलो देश के साथ।
तभी भोर शुभ जिंदगी , रोगमुक्त जब हाथ।।५।।
रोग विकट है जग फँसा , लख लख जन संहार।
यदि अब भी चेतो नहीं , नहीं भोर आसार।।६।।
आयी है विपदा बड़ी , बाधित देश विकास।
धैर्य परीक्षा की घड़ी , छँटे तिमिर की आस।।७।।
होते क्यों हो उतावला , रखो मनसि विश्वास।
फिर से गुंजेगा निकुंज , जीवन हरित सुवास।।८।।
कामयाब होंगें सभी , भागेगा यह रोग।
सावधान संयत बने , समझ समय दुर्योग।।९।।
दुख सुख जीवन चक्रिका , गमनागम जग रीत।
छँटे रात्रि नित सबेरा , है जीवन संगीत।।१०।।
डॉ. राम कुमार झा ''निकुंज"नई दिल्ली