छँटे रात्रि फिर सबेरा - दोहा - डॉ. राम कुमार झा ''निकुंज"


चहल पहल फिर से शुरु, जीवन नया प्रभात। 
सजी रेल से पटरियाँ , गमनागम सौगात।।१।।

फँस जनता जज्बात में , नतमस्तक सरकार। 

कोरोना नित बढ़ रहा, चिन्ता है व्यापार।।२।।

कोराना से डर नहीं , भूख प्यास बस शोक। 

बचें तभी तो जिंदगी , रोक पलायन रोक।।३।।

कैसे होगी अरुणिमा , फैलेगा  जब रोग। 

नहीं बचोगे तुम धरा , कौन करेगा भोग।।४।।

आत्म बली धीरज रखो , चलो देश के साथ। 

तभी भोर  शुभ जिंदगी , रोगमुक्त जब हाथ।।५।। 

रोग विकट है जग फँसा , लख लख जन संहार। 

यदि अब भी चेतो नहीं , नहीं भोर आसार।।६।।  

आयी है विपदा बड़ी , बाधित देश विकास। 

धैर्य परीक्षा की घड़ी , छँटे तिमिर की आस।।७।। 

होते क्यों हो उतावला , रखो मनसि विश्वास। 

फिर से गुंजेगा निकुंज , जीवन हरित   सुवास।।८।।  

कामयाब  होंगें सभी , भागेगा  यह रोग।  

सावधान संयत बने , समझ समय दुर्योग।।९।। 

दुख सुख जीवन चक्रिका , गमनागम जग रीत। 

छँटे रात्रि नित सबेरा , है जीवन संगीत।।१०।।


डॉ. राम कुमार झा ''निकुंज"
नई दिल्ली

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