सिद्धार्थ गोरखपुरी - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
रहा हूँ मैं - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
गुरुवार, जून 19, 2025
ज़रा-सी बात कहनी थी...
ज़रा-सा जर रहा हूँ मैं
ख़ुद से मिलने की महफ़िल में
सफ़-ए-आख़िर रहा हूँ मैं
वक़्त का ही तक़ाज़ा है
के बहुत सुलझा-सा हूँ बैठा
इससे पहले बहुत पहले
बड़ा शातिर रहा हूँ मैं
तूँ अब इतरा के चलता है
बड़ी ही शान-ओ-शौकत में
बता तेरे किस वक़्त में मैं
नहीं हाज़िर रहा हूँ मैं
बनाने पर मैं आ जाऊँ
किसी को लूँ बना अपना
तजुर्बेदार मैं भी हूँ
बड़ा माहिर रहा हूँ मैं
तेरे चेहरे पे चेहरा है
ज़रा-सा लेप ले सच को
मैं जब भी जैसा था
महज़ ज़ाहिर रहा हूँ मैं
मुझपे चाल चल-चल कर
तूँ मेरी ज़द तक न पहुँचेगा
तेरी चपेट में आने से
बहुत बाहिर रहा हूँ मैं
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