माँ - कविता - माधव झा


अँगुली पकड़ चलना सिखाया,
हाथ - पाँव  दोनो  ही  दवाया,
अपनी ममता की छाया में,
दूध - रोटी खाना भी सिखाया।

भले ही उन्होंने कष्ट काटे हैं,
नए कपड़ो में कभी न दिखे है,
लेकिन बच्चों के लिए उन्होंने,
कभी नहीं वो गरीब दिखते हैं।

टूटे-फूटे घरों में रहे है,
नून रोटी से पेट भरे हैं,
जब बच्चों पे हैं संकट आई,
बांध कफन वो खड़े उतरे हैं।

माँ की ममता बहुत ही न्यारी,
इसके  नीचे  दुनिया  हैं  सारी,
कितने भी बड़े चाहे तुम हो जाओ,
माँ  के  नजर  में  बउआ  हैं सारे।

माधव झा

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos