मंजिलें - मुक्त - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


जीवन्त  तक  बढ़ते कदम,
चाहत  स्वयं  की   मंजिलें, 
नित    बेलगाम     इच्छाएँ, 
निरत कुछ भी कर गुजरने,
ख़ो मति विवेक नित अपने, 
राहें     अनिश्चित    अकेले,
मिहनतकश  तन रनिवासर 
चिन्तातुर  आकुल  मंजिलें।

आएँगी          कठिनाईयाँ,
कठिन   कँटीली   झाड़ियाँ,
विविध      गह्वर    खाईयाँ ,
नुकीले      पाषाण   टुकड़े , 
बाधित अपनों  से  मंजिलें, 
धैर्य    आत्मबल      टूटेंगे ,   
सामने      होगी    साजीशें , 
मन   में    जगेगी   नफ़रतें, 
बदले  की   आग  जलेंगी, 
थक   बैठकर फिर  चलेंगे,
दूर  चाहत    से    मंजिलें।

आशंकित   अनहोनी    से ,
संघर्षशील          यायावर , 
झोंकते  यतन   सब   पाने, 
सच झूठ छल कपट धोखे,
सहारे   सब     पगडंडियाँ,
सब कुछ  पाने  की   चाह, 
क्षणिक दुर्लभ  इस जिंदगी, 
अविरत    परवान   चढ़ती, 
ऊँची       उड़ानें    मंजिलें।

हैं   मंजिलें       बहुरूपिये, 
धन सम्पदा   शान  शौकत, 
सत्ता   यश   गौरव   वाहनें, 
अनवरत    चाह   जीने की, 
न जाने क्या क्या पाले मन ,
बेबस  जीवन की   मंजिलें, 
बढ़े  आहत  अनाहत   पग, 
भू जात से  निर्वाण    तक , 
चढ़े  संकल्पित  ध्येय  रथ,
आश बस  चाहत  मंजिलें।  

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नयी दिल्ली

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