माँ - कविता - भरत कोराणा


दुनिया का अनमोल शब्द
जिसका सानी कोई नही। 
दुख की ढ़ाल
सुख का छाता
दोपहरी का निवाला
जिसका सानी कोई नही । 
कितनी बरखा की रातों में
रात गुजारी खुली आँखों मे
कई बार वो औषध बन गई
कही बार बनी वो दवाई
जिसका  सानी कोई नही। 
नव मासों की तप का पुतला
जिसमें मेरा पिंजर साधा
डगर राह में हर दम सजोया
जैसे मंथन का अमृत हो
जिसका सानी कोई नही। 
मेरी तुलसी बनी माँ तो
कभी रहीम की साध बनी
कभी कबीर की बोली बन
जीवन पथ का पाठ पढाया
जिसका सानी कोई नही। 
माँ घर चोखट का नमुना
माँ ईश्वर का है मुखोटा
माँ हर राह का पाथेय है
माँ जगत की है वो अम्बा। 

भरत कोराणा 
जालौर (राजस्थान)

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