जहाँ नहीं सम्मान हो , सुन्दर सोच विचार।
बचे आत्म सम्मान निज, मौन बने आधार।।१।।
निर्भय निच्छल विहग सम, उड़ें मंजिलें व्योम।
नयी सोच नव भोर हो , मातु पिता भज ओम।।२।।
अहंकार पद सम्पदा , है नश्वर यह देह।
भज रे मन श्रीराम को , यश परहित नित नेह।।३।।
शत्रु बनाना सरल है , कठिन मीत निर्माण।
कपट विरत निःस्वार्थ मन, भाव मीत कल्याण।।४।।
ज्ञान मात्र आभास मन, हो जीवन चरितार्थ।
कठिन साधना ज्ञान की , मन वश में कर पार्थ।।५।।
विनय शील सद्भावना , संकल्पित हो ध्येय।
शान्त धीर शुभ चिन्तना, सत्य प्रीत पथ गेय।।6।।
नयी भोर नव सर्जना , मानस हो अभिलास।
मंगलमय होगा दिवस , सदा रखें विश्वास।।७।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली