संदेश
गजगामिनी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
गज गामिनि वह दर्प दामिनी , कल कल करती सरिता । निर्झरिणी सी झर झर झरती , ज्यों कविवर की कविता । कोमल किसलय कुमकुम जैसी , कनक कामिनी वनि…
कल देखा है - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
नित कर्मों की बेला से जीवन को जीना सीखा है, जो ओढ़ चादर नील गगन की वो बच्चा सोते देखा है। कंचन वर्णी किरणों से पहले जगते जो देखा है, व…
माँ की ममता - कविता - आशाराम मीणा
निजधर्म को छोड़ छाड़ के, फंसा गलत इरादों में। चंद्रमा की शीतल छाया, मिले नहीं इन तारों में।। सहोदर का साथ छोड़कर, गया गैर इशारों में। म…
इरादा बदलाव का - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
बदहाल सूरत को बदल डालिए। सूबे की हालत को बदल डालिए। उग्र है सारी ख़िलक़त आघात से, अंध बादशाहत को बदल डालिए। हो रहा परेशान आवाम…
पर! कोई बात नही - कविता - प्रवीन "पथिक"
वेदना जगी! हृदय में वेदना जगी। मार पड़ी! ग़मों की मार पड़ी। विरान हो गया; सारा संसार। फिर एक बार, बारिश के थपेड़ों की झाड़ पड़ी। सपनें…
कभी हँसती, कभी रोती थी माँ - कविता - नीरज सिंह कर्दम
सड़क के उस पार खड़ी बुजुर्ग, बीमार महिला सामने वाले बंगला को बड़े ही ध्यान से निहार रही थी। सामने वाले बंगले से एक महंगी कार बाहर आती …
पहला इश्क - कविता - बिट्टू
गर ताउम्र ज़वा है जवानी का इश्क तो इस इश्क के महफ़िल में जिंदा हो कल हुई आज ख़तम वाली मोहब्बत पर क्यों तुम आज शर्मिंदा हो। लिखा करो म…
रोजगार चाहिए - कविता - मोहम्मद मुमताज़ हसन
रिश्तों में नहीं अब कारोबार ज़िल्लत-ए-ज़िंदगी को रोजगार चाहिए कर्म हो ऐसा के घर -बार चले कमाई अपनी ही हर-बार चले इल्म हो ये इंसानियत ज…
शारद शीतल पूर्णिमा - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
शरदपूर्णिमा दिवस में, सिद्धियोग सर्वार्थ। धन वैभव सुख कीर्ति फल, दानपुण्य परमार्थ।।१।। सजी चारु षोडश कला, चन्द्रप्रभा रजनीश। महारास…
पूनम का चाँद - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
आज पूनम है नज़र आता चाँद, शरद ऋतु का गज़ब ढाता चाँद। कभी घटता तो कभी बढ़ जाता है, चन्द्र कलाएँ नित नई-नई करता है। पूर्ण चाँद आज की शाम ही…
शरद पूर्णिमा महारास वाली - कविता - सुनीता रानी राठौर
शुक्ल पक्ष में आश्विन मास का पूर्णिमा, कहलाती महारास वाली शरद पूर्णिमा। आह्लादित है चटक चाँदनी चंद्र किरणें, शीतल अमृत बरसाती है शरद प…
इधर दिखाई मत पड़ना - कविता - डॉ. कुमार विनोद
कूड़े की ढ़ेर पर पॉलिथीन व कचरे पर उगा हुआ वह बालक न जाने किस जन्म से अपनी किस्मत चुन रहा है कूड़े की ढ़ेर पर। सर्व शिक्षा ,कम्प्यूटर शिक्…
शरद ऋतु का चाँद - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
शरद ऋतु का चाँद करे पुलकित अरमान चीरता अंधकार मन का दिखता उजियारा चहु ओर मन मयूर नाच उठा ले चन्दन सी आभा स्वेत रंग बरसाए उजास जैसे …
बगावत के बादशाह - हास्य व्यंग्य लेख - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
भई चुनावी बयार में तो अच्छे-अच्छे बहक जाते हैं हम तो पहले से ही बगावती बादशाह हैं शुभचिंतक तो जनता के ही है ना, कुर्सी तो एक बहाना है …
इंतज़ार - कविता - संजय राजभर "समित"
गजब की छुअन थी रोमांचित था तन-मन, हया आँखों में थी आग दोनों तरफ थी। चुप्पी थी फिर भर न जाने क्यूँ हम दोनों रुके थे इंतज़ार था दोन…
इश्क़ अभी बाकी है - कविता - अरविन्द कालमा
आँखों में काजल, होठों पर लाली लगाती है जमाना कहता है वो सोये इश्क़ को जगाती है। इस जमाने ने इश्क़ की कीमत अभी आंकी है जमाना क्या जाने हम…
रुबरु - कविता - मास्टर भूताराम जाखल
ऐ इन्सान हो तू जरा सत्य से रुबरु, सत्य ही सत्य है जो बचाए आबरू। झूठ प्रपंच पाखंड से रह सदा दुर, ना कर तू अंधविश्वास को मजबूर। ऐ नर तू …
मैं अपने लहू से लिख सकूँ - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
मैं तेरे प्यार में पागल आज, एलान अभी करता हूँ सरेआम। मैं अपने लहू से लिख सकूँ तो, दिल पर बस तेरा ही एक नाम। मेरे लिए इस जहां में क…
क्या दो ही थे हैवान? - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
यह कविता समाज के उन लोगों को समर्पित है जो समाज में सामने होते अत्याचार पर मात्र तमाशा देखते रहते हैं मदद की कोई कोशिश नहीं करते। बल्ल…
विजय पर्व हो शान्ति का - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
परमारथ सुख शान्ति लोक में, यश विजय दीप आलोक कहूँ। विजयपर्व यह सत्य न्याय का, दशहरा या रामराज्य कहूँ। कलियुग के इस व…
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