संदेश
बलात्कार - कविता - रमाकान्त चौधरी
दुष्कर्म किसे कहते हैं सब दुराचार क्या होता पापा? नन्ही बिटिया पूछ रही है बलात्कार क्या होता पापा? दुराचार है काम दुष्ट का कोशिश की …
खामोशियाँ - कविता - संजय राजभर "समित"
हाथ-पाँव दोनों बँधे थे लगभग दस फीट ऊपर एक डाल पर शोभा लटक रही थी चमचमाता चेहरा खुली आँखें मानो बोल पड़ेगी नीचे जमीन पर मात्र छः…
जाति की खातिर - कविता - नीरज सिंह कर्दम
जाति की खातिर बचा रहे हैं बलात्कारी को न्याय कैसे मिलेगा अपराधी बना रहे हैं पीड़िता को । दलित की बेटी, दलित की बेटी मीडिया रोज चिल्लात…
बाँझ - कविता - कर्मवीर सिरोवा
वो माँ जो बाँझ कही गई, समाज की फब्तियों से रोज मारी गई, जिसे लानतें फेंकी गई, जिसकी आँखों से अश्रुधार बहती रही; आज उसने आँसुओ को पोंछ …
मौन - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
आवाज नहीं कोई रहा उठा, है किसी के साथ नहीं घटा? यह समाज भी सह रहा सभी , बेटियां बहुएं सुरक्षित नहीं।। मनुष्यता अब खो गई कहीं, भीष्म से…
नारी बोल रही हैं - कविता - आशाराम मीणा
उगता सूरज लज्जत रहा है, भारत के अपमान में। घोर अंधेरा चिपक रहा है, चंदा के अरमान में।। धरती माता सिसक रही है, वीरों के बलिदान में। निर…
बेबस बहुजन बेटी - कविता - प्रीति बौद्ध
उमंग भरा मन था तेरा, उजला सा तन था तेरा।। कोमल कली थी बहुजनों की, उम्मीद लिए सुंदर जीवन की। प्रिय थी तुम सब जन की, खिल रहा था यो मन …
शिकार - कविता - दीपक राही
मुझे बहुत समझाया गया, अगर अंधेरा हो तो, घर से अकेले मत निकलना, कभी कोई कुछ भी कहे, तो चुप्पी साध कर आगे बढ़ना, इन सब के बावजूद भी मै, …
बेटी बचाओ - कविता - मोहम्मद मुमताज़ हसन
कब तलक मोमबत्तियां जलाते रहेंगे हम! आबरू लूटती रहेगी मातम, मनाते रहेंगे हम! वक़्त बदला, लोग बदले, सोच न बदली, 'फिर फिर निर्भया का…
अबला - कविता - अरुण ठाकर "ज़िन्दगी"
एक मासूम सी अधखिली कली को , कुचल मसल डाला दरिंदों ने । क्या था कसूर उसका , क्यों रौंद डाला वहशियों ने । कौन बताए उत्तर , किससे पूछ डाल…
शांति रंग - कविता - आशीष कुमार पाण्डेय
तिरंगे से शांति रंग को, चुराने वाले है कहाँ? हरियाली ने दम तोडा, फिर क्रांति ज्वाला है कहाँ? छोटी - छोटी बातो पर जो, सडको पर आ जाते है…
आखिर लाचार क्यों है बेटी - कविता - प्रमिला पांचाल
कभी होता हैं उस पर भ्रूण हत्या का वार। कभी होती हैं अंधेरी गलियों में शिकार।। इस पर ही ये जुल्म शीतम की कैसी रूत आई। आखिर क्यों बेटी…
हैवान - कविता - आनन्द कुमार "आनन्दम्"
इन भोली सूरत के पिछे, है हैवान बसा क्या है? तुझको पता। भोली सूरत काले नैना, है चाल मस्त मौला दिन को है बेवाक वो घूमें, जैसे कोई परिंदा…
मुक्त ही करो - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
आखिर कब तक हम बेटियाँ यूँ ही लुटती पिटती मरती रहेंगी, कब तक हमारी खुशियां हमारा सुखचैन यूँ ही छिनता रहेगा। कभी गर्भ में, कभी दहेज …
कैसे समझते हैं खुद को पुरुष - कविता - उमाशंकर राव "उरेंदु"
खेत में काम करती हुई अकेली लड़की एकांत में पड़ी लड़की हो या शौच को निकली लड़की,या फिर बाग बगीचे में दिखनेवाली लड़की को देखकर कैसे क…
बलात्कारियों पर अंकुश - लेख - चन्द्र प्रकाश गौतम
बदलते सामाजिक परिवेश में हमें अपने सोच को बदलने की जरूरत है। साथ ही हम सभी पुरुष वर्ग को अपनी पुरुषवादी मानसिकता को भी बदलने की जरूरत …
नकली सुबह - कविता - कर्मवीर सिरोवा
सुबह हुई हैं क्या ये सच हैं या फिर ये भी कोई धोखा है आँखों का। अंधेरा भी कहाँ मरता हैं, हाँ, नकली उजाला फैला है। फ़क़त स्याह रात ढ़कने एक…
शोकाकूल स्तब्ध हूँ - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
निःशब्द मौन शोकाकूल स्तब्ध हूँ, क्रन्दित मन शर्मसार प्रश्नचिह्न हू्ँ। खो मनुजता कुकर्मी बस दंश बन, क्या कहूँ, क…
मौत के हकदार - गीत - समुन्द्र सिंह पंवार
जो करते बच्चियों से बलात्कार। वे हैं मौत के हकदार।। उनसे कैसी हमदर्दी, जो हैं बेगैरत बेदर्दी, जो करते इज्जत तार - तार। …
नारी की दुर्दशा - कविता - आशाराम मीणा
मानवता मर चुकी हैं, इन कलयुगी सरकारों में। हाथरस की गैंगरेप की, ना खबर हैं अखबारों में।। दलित की बेटी को क्या हक है मानवाधिकारों में।…
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