हैवान - कविता - आनन्द कुमार "आनन्दम्"

इन भोली सूरत के पिछे, है हैवान बसा
क्या है? तुझको पता।

भोली सूरत काले नैना, है चाल मस्त मौला
दिन को है बेवाक वो घूमें, जैसे कोई परिंदा

शाम को लौटें घर को आयें, दिए काम को अंजाम
ऐसी-ऐसी बात वो करते, लगता है कोई इंसान

तुझको लूटा मुझको लूटा, सब घर को किया सुनसान
फिर भी न समझे ये नादान, कहाँ है ये हैवान..! 

आनन्द कुमार "आनन्दम्" - कुशहर, शिवहर (बिहार)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos