कब तलक मोमबत्तियां जलाते रहेंगे हम!
आबरू लूटती रहेगी मातम, मनाते रहेंगे हम!
वक़्त बदला, लोग बदले, सोच न बदली,
'फिर फिर निर्भया कांड' दोहराते रहेंगे हम!
'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' बेमानी है
जबतक, बेटियों की शहादत मनाते रहेंगे हम!
देकर दिलासा उस अभागी माँ को कबतक,
मुआवजों का मरहम लगाते रहेंगे हम!
मांगती है इंसाफ आत्माएं अदालत से,
और क़ातिल को तारिखों पर बचाते रहेंगे हम!
अस्मतें लुटती रहेगी बचता रहेगा अमानुष,
संसद में नित् नए कानून, बनाते रहेंगे हम!
खुद ही करते हैं नजरो से वार बेटियों पे,
हिफाजत का शोर भी मचाते रहेंगे हम!
मोहम्मद मुमताज़ हसन - रिकाबगंज, टिकारी, गया (बिहार)