अबला - कविता - अरुण ठाकर "ज़िन्दगी"

एक मासूम सी अधखिली कली को ,
कुचल मसल डाला दरिंदों ने ।
क्या था कसूर उसका ,
क्यों रौंद डाला वहशियों ने ।
कौन बताए उत्तर ,
किससे पूछ डाले ।
ये सिलसिला खत्म होगा कब 
कोई राह तो दिखाए ।

अरुण ठाकर "ज़िन्दगी" - जयपुर (राजस्थान)

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