अरुण ठाकर "ज़िन्दगी" - जयपुर (राजस्थान)
अबला - कविता - अरुण ठाकर "ज़िन्दगी"
गुरुवार, अक्टूबर 08, 2020
एक मासूम सी अधखिली कली को ,
कुचल मसल डाला दरिंदों ने ।
क्या था कसूर उसका ,
क्यों रौंद डाला वहशियों ने ।
कौन बताए उत्तर ,
किससे पूछ डाले ।
ये सिलसिला खत्म होगा कब
कोई राह तो दिखाए ।
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