संदेश
संघर्ष का सूर्योदय - कविता - सुशील शर्मा | मज़दूर दिवस पर कविता
धूप की पहली किरण, उजागर करती अनगिनत चेहरे, जो झुकते हैं धरती पर, उठाते हैं भार, बनाते हैं राहें। हाथों में खुरदरापन, धमनियों में बहता …
कौन जिलवा से तु अइलु गोरी - भोजपुरी गीत - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
हरी-हरी खेतवा में, देखे तोहे नज़रिया, हे गोरी, हमर दिलवा एक सवाल करेला, अरे, कौन जिलवा से तु अइलु गोरी, ई दिलवा के बेहाल करेला। प्यारी-…
स्वयं के भीतर शिव को खोजूँ - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
स्वयं के भीतर शिव को खोजूँ, ख़ुद वैरागी हो जाऊँ। मोह-मृग की माया त्यागूँ, शून्य में लय हो जाऊँ॥ मन-वेदी पर दीप प्रज्वलित, शुद्ध प्राण क…
काम ऐसा हो कि तकरार न हो - ग़ज़ल - निर्मल श्रीवास्तव
काम ऐसा हो कि तकरार न हो जीत हो ना हो मगर हार न हो ज़िंदगी मायने क्या रखती है ज़िंदगी में मिला जो प्यार न हो हुस्न को हुस्न कहा जाता है …
गप्पों: बीसवाँ चित्र - कहानी - सुनिता पन्ना
आज सुबह-सुबह मैं सैर के लिए लेडीज पार्क गई। यह पार्क हमारे घर से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर ही है। मेरा पिछले 15 सालों से ग्वालि…
फिर से नवसृजित होना - कविता - कमला वेदी
मनुष्य को जवाँ और ज़िंदा बनाए रखती है छोटी-छोटी ख़ुशियाँ छोटे-छोटे एहसास जीने को ज़रूरी है थोड़ी-सी चाह थोड़ी-सी प्यास हास-रोदन के अनगिनत ए…
हम सुनाते दास्ताँ अपनी कि वो सुनाने लगे - ग़ज़ल - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तकती: 22 22 22 22 22 22 हम सुनाते दास्ताँ अपनी, कि वो सुनाने लगे हम करते आग़ाज़-ए-इश्क़,…
तुम न बदलना - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'
तुम न बदलना, वक्त भले बदलता रहे। इश्क़ का चिराग़ आँधियों में भी जलता रहे। न मिल सको हर रोज़ तो कोई बात नहीं! इतना सा दिख जाओ कि निगाहों क…
मकड़ी - कविता - प्रवीन 'पथिक'
अपने कटु मनोभावों का जाल, बुनती हुई मकड़ी! सोद्देश्य– निमग्न अवस्था में कुएँ के अंतिम छोर तक; पहुॅंच गई है। अप्रत्याशित रूप से, वह ख़ुश…
आईना झूठ नहीं बोलता - कविता - रत्नेश शर्मा
सभी कहते हैं आईना झूठ नहीं बोलता इन्सान हो या पर्वत-पहाड़ बेदाग़ चेहरा हो या दाग़दार हू-ब-हू दर्शा देता है। इसीलिए, नए दौर के लोग आईना न…
जागृति - कविता - भजन लाल हंस बघेल
सूर्योदय से पहले चिड़िया चहचहाई, उठो! जागो! यह संदेशा लाई। चल रही मंद-मंद शीतल पवन, अति आनंदित! रोमांचित! तन और मन। पीपल के पत्तों की …
रूप की रवानी - घनाक्षरी छंद - सुशील कुमार
काले कजरारे नैना गाल है गुलाबी और, दामिनी से दाँत चमकाय रही गोरी है। अंग-अंग कुसुमित फूले फुलवारी ज्यो, ख़ुशबू से मन को लुभाय रही गोरी …
नशा मुक्ति - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
लगी लतें द्रग नशा की, नौनिहाल इस देश। तम्बाकू गाजा चरस, नशाबाज़ परिवेश॥ गज़ब नशा वातावरण, यौवन वय मदपान। अल्कोहल मदिरा नशा, रत जीवन अव…
घरेलू हिंसा - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
गरिमामय तरीक़े से जीने के अधिकार का हनन ही घरेलू हिंसा कहलाता है। वर्तमान समय में लोगो की असहिष्णुता, बेरोज़गारी, अति स्वार्थी प्रवत्ति,…
मुझे तुमसे कुछ कहना है - कविता - ब्रज माधव
देखो बच्चे बड़े हो गए हैं घर से बाहर चले गए हैं मेरे पास समय ही समय है टीवी अख़बारों से मन भर गया है दफ़्तर में भी आज छुट्टी है पास बैठ त…
गंगा की लहरों में - कविता - अदिति वत्स
ऋषिकेश, मैं तुमसे मिलने आई थी, पहली बार, जैसे कोई तीर्थयात्री अपनी आत्मा की खोज में किसी अनजान मंदिर की ओर भटक जाए। तेरा नाम मेरे कानो…
अंदर का इंसान और पिंजरे का चूहा - कहानी - बिंदेश कुमार झा
आज का दिन बाक़ी दिनों से अलग होने वाला था। एक बड़ा प्रोजेक्ट था और आज उसकी प्रस्तुति थी ऑफिस में। यह कितना महत्वपूर्ण था, इसका अंदाज़ा …
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