आखिर लाचार क्यों है बेटी - कविता - प्रमिला पांचाल

कभी होता हैं उस पर भ्रूण हत्या का वार।
कभी होती हैं अंधेरी  गलियों में  शिकार।।
इस पर ही ये जुल्म शीतम की कैसी रूत आई।
आखिर क्यों बेटी पर ही इतनी लाचारी हैं छाई।।

इसके जीवन में ही पतझड़ सा रुझान है।
पहचानों  जरा यह भी तो  एक इंसान हैं।
जब होता शोषण,अा जाती बीच राजनीति।।
कई नेता अपनाते तब जीतने की कूटनीति।।

मीडिया और अखबार तो भरे पड़े हैं
बेटी  के बलात्कार से।
इस बेमतलब की सरकार को मिटा दो
अबकी बार इतिहास से।।

बनो इंसान तुम छोड़ कर बात मजहब की
लड़ो मिलकर दरिंदो से छक्के छुड़वा दो।।
यहाँ जात पात नहीं  है किसी के बाप की।
जाकर हैवानों को तुम जमीन में गड़वा दो।।

परोपकार कर बेटियों पर
उस पर शोषण हर रोज़ होता है।
बेटी बचाओ बेटी बचाओ,
हर इंसान बिलख कर रोता है।।

खत्म हो गई इंसानियत, फिर इंसान ज़िंदा है।
बेटी के जिस्म को नोचने वाले नामर्द ज़िंदा है।
हर रोज़ मिल रही हैं एक नई निर्भया, मनीषा।
आज भी कहीं न कही वो दुशासन ज़िंदा है।।

जिधर भी देखो नजर आता बेटी पर अत्याचार।
आखिर क्यों होता है रोज लड़की का बलात्कार?
हर रोज़ हर एक बेटी अत्याचार को सह रही है।
अन्याय हो रहा, चीखें उनकी इंसाफ मांग रही हैं।।

उस माँ का तो सोचो जिसने बेटी अपनी खोई।
उस बेटी का तो सोचो कितना वह होगी रोई।।
आशीफा, प्रियंका ना जाने कितनी निर्भया को लुटा है।
एक बार फिर जन जन में आक्रोश फूटा है।।

जिस देश को तुमने नारी शक्ति का नाम दिया।
कभी बेटी को बदनाम किया तो कभी मार दिया।।
तुम बस बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देते हो।
गुनाह बेटा करे तब क्यों ना सरेआम लटका देते हो।।

अब तो  लगता है  बेटी को ही फूलन बनना होगा।
जिस्म नोंच खाने वाले को तुझे ही निगलना होगा।।
अब हर बेटी को अबला नहीं, रौद्र रुप बन चलना होगा।
छाती पर जो रखे हाथ, उसके सीने को मसलना होगा।।

प्रमिला पांचाल - अरणाय, सांचौर (राजस्थान)

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