संदेश
अधूरा ख़्वाब - कविता - अजय कुमार 'अजेय'
मेरी तन्हाई में ख़्वाब तेरे, ग़र रोज़-रोज़ दस्तक देते। चाहत के झरोखे से बाहर, दो बिंदु ताँक-झाँक में रहते।। मेरे कंपित अधरो की भाषा, जो न…
निशिभर नींद नहीं आई - गीत - संजय राजभर 'समित'
पूर्वी बयार था मतवाला, छाई तन में अँगड़ाई। याद सताती रही तुम्हारी, निशिभर नींद नहीं आई। देख मुझको आधी रात में, नागिन भी डर के भागी। ल…
नई उषा से - कविता - आशीष द्विवेदी 'साथी'
नई उषा, नई विभा, अब नया विहान हो, स्वदेशी पंथ पर चलकर देश महान हो। नई हो ज़मीन अपनी, नया आसमान हो, नवीन हो पंख अपने, नई उड़ान हो। कर्तव…
गुरु जी - कविता - समुन्द्र सिंह पंवार
तुझको शीश झुकाता गुरु जी, तुम हो ज्ञान के दाता गुरु जी। तुम ही ब्रम्हा और विष्णु, महेश, तुम ही भाग्य विधाता गुरु जी। पहले आपको फिर हरि…
डर मुझे कुछ नहीं ज़माने का - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1212 22 डर मुझे कुछ नहीं ज़माने का, डर है बस उसके रूठ जाने का। वो न कश्ती में मेरे साथ च…
अश्क - कविता - अर्चना कोहली
आँसुओं संग हमारा अजीब सा रिश्ता है, ग़म हो या ख़ुशी बहने को बेताब रहता है। दुख से जब दिल हमारा भारी हो जाता है, तब आँसू ही शांत हमारा मन…
डाँट - संस्मरण - महेन्द्र 'अटकलपच्चू'
मुझे याद है आज भी वो दिन जिस दिन मेरे पिताजी ने बुरी-बुरी गालियाँ देकर घर से निकल जाने को कहा था। बेरोज़गार था काम-धाम करता नही था। ऊपर…
कविता यादों की - कविता - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
याद करना होता सरल पर भूलना ज्यादा कठिन, आसान है प्यार करना पर समझना ज़्यादा जटिल। जिसको चाहे उसको कर ले याद जब जी करें पर नहीं आसान ह…
नारी का अस्तित्व - कविता - बीरेंद्र सिंह अठवाल
ख़ुशी कम दुख ज़्यादा सहन करती है नारी, हर घड़ी काँटों की डगर से गुज़रती है नारी। सदियों से नारी को क्यों देना पड़ा इम्तहान, समस्या नारी क…
सृजन के क्षण - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
रात्रि सुख स्वप्न लेती, मौन की चादर लपेटी। एक जीवन, या कि अर्पण सोम मेरे हाथ में है, एक अकिंचन यात्रा का दर्द मेरे साथ में है। प्रकृति…
शिक्षा का उद्देश्य - लेख - रेखराम साहू
प्रस्तुत विषय अपनी प्रकृति में इतना व्यापक, बहुआयामी, सूक्ष्म और जटिल है, कि इसे समझने के लिए जिस सहजता की अपेक्षा होती है, वह दुर्लभ …
कृष्ण की बाँसुरी - गीत - पशुपतिनाथ प्रसाद
बजती बाँसुरी कृष्ण की थी गजब, लोग होते मोहित दुख को भूल कर। बहने लगती हवा मदमाती वहाँ, सतरंगी फर्श बिछ जाती जहाँ। दौड़ती गोपियाँ नींद …
हर सपने पूरे होंगे अब - कविता - गौरव दात्रया
पल भर के लिए मूँदी आँखे, एक ख़्वाब ज़हन में डोल गया, एक ख़्वाब में थे ख़्वाब हज़ार, हर ख़्वाब अधूरा रह गया। सौ दफ़े हारा हूँ, सौ दफ़े म…
चाह - कविता - तेज देवांगन
हम जीत की चाह लिए, गिरते, उठते पनाह लिए, निकल पड़े है, जीत की राह में, चाहे कंटक, सूल, ख़ार हो, आए संकट विकार हो, निकल पड़े हम जीत की र…
भारत की प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले - जीवनी - गीता देवी हिमधर
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 में हुआ था। उनका जन्म महाराष्ट्र के एक किसान परिवार में हुआ था। सावित्री बाई के पिता का नाम खंडो…
कौवा और कोयल - कविता - नंदनी खरे
यह कैसी है सोच यहाँ की कौवा कहाँ का कोयल कहाँ की, कोयल काली काला कौवा क्यों लोगों को अंतर ही भाया, कोयल को दाना देकर बुलाया और कोई क…
बूँद में जीवन - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
जब भी एक बूँद निकलती है भला वह क्या जाने ज़मीन पर जाकर वह किस से मिलती है? फिर भी कर्म के पथ पर चलकर वह नदी, पोखर, तालाब, कीचड़, नाली,…
काशी नगरी की पहली बारिश - कविता - नीलम गुप्ता
काशी नगरी की इस पहली बारिश ने मुझे अपने गाँव की बारिश की याद दिलाई। यूँ बादल का गरजना और बिजली का तड़कना मेरे मानस पटल पर सहसा ग्रामीण…
अतीत की विदाई और स्वागत नव वर्ष - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
करें विदाई इक्कीस अतीत, जो कोरोना काल बना हो। स्वागत आगत नववर्ष लसित, सुखद प्रगति उल्लास नया हो। आओ नया साल मनाएँ हम, नव उषा किरण…
नवल वर्ष तुम्हारा अभिनंदन है - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
ओ नवल वर्ष दो हज़ार बाइस! तुम्हारा अभिनंदन है। आओ प्रत्येक सदन में बन कर समय और प्रवहमान करो जीवन। ज्ञान लक्ष्य जन-जन को प्रदान करो सुख…
तू स्वयं को रच - कविता - राघवेंद्र सिंह
नव वर्ष है एक कोरी पुस्तक, दे रही नई कोई दस्तक। ले क़लम हाथ रच कुछ ऐसा, ना लिखा लकीरों में जैसा। बन स्वयं भाग्य का निर्माता, ख़ुद को रच …
नव वर्ष अभिनंदन - कविता - रमाकांत सोनी
नई प्रेरणा नए तराने वर्ष नई उमंगे लेकर आ, नया साल जीवन में सदभावों की ज्योत जगा। नई-नई आशाएँ भावन होठों पर मधुर मुस्कानें हो, प्यार के…
नव वर्ष - कविता - सीमा वर्णिका
अभ्युदित हो रहा प्राची से, अंशुमाली लेकर नूतन विहान। नव वर्ष की पुनीत बेला में, अदृश्य शत्रुओं से हो परित्राण। विगत वर्षों का संकट अप…
संकल्प - कविता - मयंक द्विवेदी
नव वर्ष के प्रांगण में संकल्पों के बंधन में बंधनें को क्या तैयार हो? लड़ने को क्या तैयार हो? कोरी-कोरी बातों से, थोथे-थोथे वादों से, च…
ये साल तो थोड़ा नया-नया हो - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
आपस में कई गुना प्रेम बढ़े, और चारो तरफ़ ख़ुशहाली हो। स्नेह, साथ अपनों का मिले, अरे भले ही जेबें खाली हो। दो साल बड़े बेकार गए, जीते जी सब…