समुन्द्र सिंह पंवार - रोहतक (हरियाणा)
गुरु जी - कविता - समुन्द्र सिंह पंवार
शुक्रवार, जनवरी 07, 2022
तुझको शीश झुकाता गुरु जी,
तुम हो ज्ञान के दाता गुरु जी।
तुम ही ब्रम्हा और विष्णु, महेश,
तुम ही भाग्य विधाता गुरु जी।
पहले आपको फिर हरि को,
सुन लो मैं तो मनाता गुरु जी।
सब नातों से ऊँचा है ये,
जग में आपका नाता गुरु जी।
करके आपके दर्शन मैं तो,
फूल्या नहीं समाता गुरु जी।
जब से आया शरण आपकी,
मान सभी से पाता गुरु जी।
सदा रखियो तुम हाथ शीश पर,
और ना कुछ मैं चाहता गुरु जी।
सच्चे दिल से महिमा आपकी,
'पंवार' निश-दिन गाता गुरु जी।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
सम्बंधित रचनाएँ
गुरु ऋण मुझ पर है - कविता - रविंद्र दुबे 'बाबु'
गुरु सृष्टि का वरदान - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
कुंभकार : अध्यापक - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन' | शिक्षक दिवस पर कविता
गुरु - कविता - अर्चना मिश्रा
शिक्षक गढ़ता नव परिवेश - कविता - द्रौपदी साहू
डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - कविता - राघवेंद्र सिंह | शिक्षक दिवस विशेष कविता
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर