नई उषा से - कविता - आशीष द्विवेदी 'साथी'

नई उषा, नई विभा, अब नया विहान हो,
स्वदेशी पंथ पर चलकर देश महान हो।
नई हो ज़मीन अपनी, नया आसमान हो,
नवीन हो पंख अपने, नई उड़ान हो।
कर्तव्यों का अपने, निर्वाह हम करें,
राष्ट्र हित अपनी तन-मन, जान हो।
स्वार्थ का आवरण हम उतार फेंके,
राष्ट्र उन्नति का अब नया उफान हो।
स्वतंत्र राष्ट्र ध्वज उड़े, अपनी शान से 
हर दिल को देश पर गर्व अभिमान हो।
अर्थ तंत्र, विज्ञान में भारत ऊँचा उठे 
विदेशी चालों से हम सावधान हो।
भ्रष्ट राजनीति से मुक्त क़ानून हो 
न्याय नीति 'साथी' सबके लिए समान हो।
पश्चिम के भोग विलास से हम दूर रहें,
नारी नहीं भोग्या इसका सम्मान हो।
जाति और धर्म के सारे फ़साद मिटें,
देश में अमन, शांति, सुख चैन हो।
नया उत्साह, नया लक्ष्य, नई व्यवस्था हो 
विश्व शक्ति भारत अब, भारत बलवान हो।

आशीष द्विवेदी 'साथी' - उदइया, डूंगरपुर (राजस्थान)

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