डर मुझे कुछ नहीं ज़माने का - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त

अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़ती : 2122  1212  22

डर मुझे कुछ नहीं ज़माने का,
डर है बस उसके रूठ जाने का।

वो न कश्ती में मेरे साथ चलें,
हो जिन्हें ख़ौफ़ डूब जाने का।

फिर सुनाऊँगा हाल-ए-दिल तुमको,
वक्त आया अगर सुनाने का।

कब तलक उसकी जाँ बचाओगे,
हो जिसे शौक ज़हर खाने का।

वो सुनेगा नितान्त के अशआर,
है जिसे शौक गुनगुनाने का।

समीर द्विवेदी नितान्त - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)

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