समीर द्विवेदी नितान्त - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)
डर मुझे कुछ नहीं ज़माने का - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
बुधवार, जनवरी 05, 2022
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़ती : 2122 1212 22
डर मुझे कुछ नहीं ज़माने का,
डर है बस उसके रूठ जाने का।
वो न कश्ती में मेरे साथ चलें,
हो जिन्हें ख़ौफ़ डूब जाने का।
फिर सुनाऊँगा हाल-ए-दिल तुमको,
वक्त आया अगर सुनाने का।
कब तलक उसकी जाँ बचाओगे,
हो जिसे शौक ज़हर खाने का।
वो सुनेगा नितान्त के अशआर,
है जिसे शौक गुनगुनाने का।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर