ये साल तो थोड़ा नया-नया हो - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी

आपस में कई गुना प्रेम बढ़े,
और चारो तरफ़ ख़ुशहाली हो।
स्नेह, साथ अपनों का मिले,
अरे भले ही जेबें खाली हो।
दो साल बड़े बेकार गए,
जीते जी सबको मार गए।
मनमोहक अंदाज़-ए-बयाँ हो,
ये साल तो थोड़ा नया-नया हो।।

दिखावे से हर कोई दूर रहे,
सच्चे रिश्ते तो ज़रूर रहें।
अपने अपनेपन के ख़ातिरतिर
हर कोई मशहूर रहे।
सोच लो गर ऐसा हो जाए,
तो जीवन में सबकुछ अच्छा हो।
मनमोहक अंदाज़-ए-बयाँ हो,
ये साल तो थोड़ा नया-नया हो।।

जमाने का मौसम, भले ही आर्द्र रहे,
फिर भी सब में, प्रेम सौहार्द रहे।
ख़ुशियों की बारिश हो जग में,
भीगा सारा गोलार्ध्द रहे।
सारी दुनिया ख़ुशियों से नहाए,
फिर देखो कैसे क्या-क्या हो।
मनमोहक अंदाज़-ए-बयाँ हो,
ये साल तो थोड़ा नया-नया हो।।

दो साल ऐसे ही बीत गए,
दूर अनगिनत मीत भए।
मनहारी धुन उपजे इस साल,
हमने जो थे संगीत बए।
तन-मन उर्जित रहे हमेशा,
ख़ुशियों से ही बँधा समाँ हो।
मनमोहक अंदाज़-ए-बयाँ हो,
ये साल तो थोड़ा नया-नया हो।।

सिद्धार्थ गोरखपुरी - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

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