नव वर्ष - कविता - सीमा वर्णिका

अभ्युदित हो रहा प्राची से, 
अंशुमाली लेकर नूतन विहान।
नव वर्ष की पुनीत बेला में,
अदृश्य शत्रुओं से हो परित्राण।

विगत वर्षों का संकट अपार,
भयांकित मन संशय में थी जान।
जन-जन ने लड़ा यह महायुद्ध,
सांसत में फँसे थे सभी के प्राण।

आहुति चढ़ गई अनेकों की,
अनगिनत लाशों से पटे श्मशान।
सुख चैन व अमन खो गया,
असाध्य रोग से खोया अधिमान।

परस्पर प्रेम सद्भाव मिट गया,
भूले रिश्ते नाते जो थे दरमियान।
कुछ समाज सेवी आगे आए,
बाँटा दवा व खाने का सामान।

नव वर्ष में आशा का हो संचार,
सुंदर परिवेश व खुला आसमान।
निर्बाध गति प्रगति करें राष्ट्र,
परिंदे सी भरें नभ में ऊँची उड़ान।।

सीमा वर्णिका - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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