अधूरा ख़्वाब - कविता - अजय कुमार 'अजेय'

मेरी तन्हाई में ख़्वाब तेरे,
ग़र रोज़-रोज़ दस्तक देते।
चाहत के झरोखे से बाहर,
दो बिंदु ताँक-झाँक में रहते।।

मेरे कंपित अधरो की भाषा,
जो नयन तुम्हारे पढ़ लेते।
तर जाता मेरा मन मरुस्थल,
मनोभाव अंतःकरण रच देते।।

पागल मन, जुझारू तन,
मूरत मन में बसा लेते।
टूटा तारा, भागी निंदिया,
सुप्रभात सौभाग्य बना देते।।

मेरी तन्हाई में ख़्वाब तेरे,
काश! इक़रार जता देते।
चाहत सेज पर फूल सजा,
फिर से एक रात जगा देते।।

मुद्दत से रतजगा तन्हाई,
उन्माद है आँखों में छाया।
ग़र ज़रा मुहब्बत है दिल में,
साक़ी तुम जाम पिला देते।।

अजय गुप्ता 'अजेय' - जलेसर (उत्तर प्रदेश)

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