संदेश
संविदा शिक्षक का दर्द - लघुकथा - शमा परवीन
मास्टर साहब हमारा बक़ाया कब दोगे? भाई दे दूँगा तनख्वाह आने दो। अगर आप हमारे मुन्ने को कुछ दिन पढ़ाये ना होते तो कसम से हम अपना पैसा आज …
अमर हुए जाँबाज़ - कुण्डलिया छंद - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
सुकुमा की धरती हुई, आज रक्त से लाल। परिजन सारे रो रहे, होकर के बेहाल।। होकर के बेहाल, तड़पते घायल सैनिक। ज़ालिम चलते चाल, हया भी आज गई ब…
वीरगाथा शहीदों की- कविता - मिथलेश वर्मा
देश सेवा इबादत हो गया, अब हद-ए-शहादत हो गया। श्रद्धांजलि सबकी आदत हो गई।। चिराग़ था किसी घर का, देखो आज खो गया। भारती की सेवा करते, क़ुर…
मेला - लेख - मंजरी "निधि"
मेला यह शब्द सुनते ही ढेरों यादें और एक विस्तृत चित्रण आँखों के सामने ऐसा आता है कि वो प्रत्यक्ष लगने लगता है। मेले के नाम से एक रोमां…
जल ही जीवन है - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जल से जीवन है जगत, जीवन है आधार। चलो बचाएँ आज मिल, कुदरत इस उपहार।। जल जीवन का संचरण, ईश्वर का वरदान। रखें स्वच्छ निर्मल सलिल, बचे तभी…
बचपन की याद - कविता - समय सिंह जौल
ऐसी थी बचपन की याद। चूल्हे की रोटी लगती थी स्वाद।। गऱीबी का भी नहीं, होता था अहसास। माँ की ममता, पिता का प्यार था पास।। दादाजी की परिय…
लाज़मी है - ग़ज़ल - मनजीत भोला
न शिकवा ना शिकायत लाज़मी है। मुहोब्बत बस मुहोब्बत लाज़मी है।। दरख़्तों को मुनासिब सख़्तियाँ भी, गुलों को तो नज़ाकत लाज़मी है। क़फ़स गर तोड़ने ह…
माँ शारदा स्तुति - लावणी छंद - महेन्द्र सिंह राज
माँ के चरणों की धूली को, हम निज शीश चढा़ते हैं। उनके चरणों में हम सब नित, अपना शीश झुकाते हैं।। हे मातु शारदे तेरा कर, जिस पर भी पड़…
भाई बहन - बाल गीत - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल"
अपने सब कामों से हैं सबको रिझाते। भाई बहन प्यार के हैं गीत गुनगुनाते।। साथ-साथ रहते हैं, साथ-साथ खाते। साथ-साथ लड़ते झगड़ते खिलखिलाते।…
दे दो अब संगीत प्रिये - गीत - शिव गोपाल अवस्थी
मेरी स्वप्निल कविताओं को, दे दो अब संगीत प्रिये। कविताओं में प्रेम लिखा है, सागर की गहराई का, सात सुरों का सूत्र लिखा है, राग लिखा शहन…
ज़िंदगी के रूप-रंग - कविता - मधुस्मिता सेनापति
हर एक के लिए अलग रूप है ज़िंदगी किसी के लिए यह जन्नत है तो किसी के लिए जहन्नुम है जिंदगी...!! जहाँ बेरोज़गार के लिए रोज़गार है ज़िंदगी, वह…
सतत विकास में कहाँ हैं हमारा समाज - आलेख - परमजीत कुमार चौधरी
हमारा देश और समाज निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है और हमने काफी सारे उपलब्धियां भी हासिल की है। परंतु क्या हमारा समाज सतत विकास की ओर अ…
औरत - कविता - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
मैं हमेशा औरों में ही रत हूँ, हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ। मैं हमेशा प्यार वात्सल्य एवं ममता लुटाती हूँ। हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।। मैं बेटी …
दहेज एक अभिशाप - लेख - गुड़िया सिंह
दहेज एक ऐसी प्रथा है, जिसे प्रथा का नाम न देकर अभिशाप कहना ज़्यादा जायज़ जान पड़ता है, हमारे भारत जैसे देश में जहाँ कितनी ही विभूतियों का…
मनुष्यता के मानक - गीत - मोहित बाजपेयी
बहुत सी अमृत ऋचाएँ, लिखी है धरती गगन पर। जगत का हर कण सिखाता, बहुत कुछ इंसान को।। तेल के स्नेह में बाती जली खो कर स्वयं को। तब जला दीप…
अपने ही अपने होते हैं - कविता - रविन्द्र कुमार वर्मा
अपनों का हाथ हो हाथों में, हर मुश्किल आसाँ होती हैं। अपनों के बिना गर सच पुछो, बगियाँ भी वीराँ होती है।। अपनों के हाथ मिलें जब जब, तब …
वो कौन है जो राह दिखाता चला गया - ग़ज़ल - आलोक रंजन इंदौरवी
वो कौन है जो राह दिखाता चला गया। सोए हुए थे हम तो जगाता चला गया।। बेदर्द ज़माने नें मुझे ग़म ही ग़म दिया, हर दर्द को वो मेरे मिटाता चला …
कहीं फर्श तो कहीं रंगे मन - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
होली की वह मधुमय बेला, बीत गई कुछ छोड़ निशानी। गली मोहल्ले रंग रंग है, रंगा हुआ नाली का पानी। दीवारों पर रंग जमा है, चेहरो पर भी रंग र…
स्मृति के झरोखे से - लघुकथा - रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"
शादी के बारह वर्ष बाद पति और बच्चों के साथ पहली बार होली मनाने मामा के घर आई रमा की नज़र एक खिड़की पर जा टिकी और अतीत की खुशनुमा स्मृति…
परिधान - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
हंसवाहिनी विधिप्रिये, श्वेताम्बर परिधान। शारद सरसिज शारदे, मानवीय दे ज्ञान।। सिहरे तन परिधान लद, आलस कारज देर। ले चपेट निज वृद्धजन, थि…
पन्ना धाय - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
कौन नहीं जानता? किसे नहीं पता? पन्ना धाय की विशालता को, जिसकी विशालता के आगे हिमालय भी छोटा हो गया। पन्ना के त्याग के आगे धरती आकाश क्…
प्रकृति संरक्षण - गीत - संजय राजभर "समित"
सुन बदरा रे! हैं विकल जीव सारे, शिथिल सब थके हारे। तप्त हलक अधरा रे ! सुन बदरा रे! सूखे ताल-तलैया, अब कौन ले बलैया? है लू का पहरा रे…
हे मतदाता - कविता - अंकुर सिंह
हे मतदाता!, हे राष्ट्रनिर्माता! दारू मुर्गे पर ना बिक जाना। प्रत्याशी को समझ परख कर, मतदान ज़रूर तुम कर आना।। लोकतंत्र के तुम हो आधार, …
हैवानियत हावी है अब इंसानियत पर - ग़ज़ल - एल. सी. जैदिया "जैदि"
हैवानियत हावी है अब इंसानियत पर। तरस खाता नही है कोई मासूमियत पर।। भूल से भरोसा मत करना इस जहां मे, बैठा हो ज़ालिम चाहे जिस हैसियत पर। …
नारी तुम महान हो - कविता - विनय विश्वा
धारणी धरा प्रकृति यौवन, तुम वात्सल्य की पारावार हो। नारी तुम महान हो।। कभी गृहणी कभी कर्मस्वरुपा, नये नये तेरे रूप अनूपा, कभी तनुजा कभ…