जल ही जीवन है - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

जल से जीवन है जगत, जीवन है आधार।
चलो बचाएँ आज मिल, कुदरत इस उपहार।।

जल जीवन का संचरण, ईश्वर का वरदान।
रखें स्वच्छ निर्मल सलिल, बचे तभी जग जान।।

गिरि नद निर्झर अरु सरित, स्वच्छ रखें जलस्रोत।
सिंचित धरती श्यामला, उपजाऊ बन जोत।।

प्रतिबंधित हो कर्तना, गिरि नद तरु वन पाद।
रक्षण कर जल सम्पदा, या भोगो अवसाद।।

ख़ुद का दुश्मन मनुज अब, फँसा मोह निज लोभ।
औद्योगिक जीजिविषा, सलिल प्रदूषित क्षोभ।।

जहरीला जल है बना, जो रक्षक नित प्राण।
पिघल रहा है ग्लेशियर, जल बिन कैसे त्राण।।

सूख रही नदियाँ सभी, सीमित हुई जलधार।
डूब रही भू बाढ़ से, फँसा मनुज मझधार।।

बन्द करो बर्बादियाँ, जल जीवन आधार।
जल बिन जनता तरसती, बचा सलिल उपकार।।

जल जीवन जीवन्त बन, जीव जन्तु जग प्राण।
संजीवन जीवन सुधा, जल रक्षण कल्याण।।

कवि निकुंज विनती सकल, बनो मनुज खुद्दार।
जल है तो जीवन जगत, है जीवन पतवार।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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