ज़िंदगी के रूप-रंग - कविता - मधुस्मिता सेनापति

हर एक के लिए
अलग रूप है ज़िंदगी
किसी के लिए यह जन्नत है तो
किसी के लिए जहन्नुम है जिंदगी...!!

जहाँ बेरोज़गार के लिए
रोज़गार है ज़िंदगी,
वहीं प्यासे के लिए 
नीर भी है ज़िंदगी...!!

जहाँ भूखे के लिए
रोटी है ज़िंदगी,
वहीं मरीज़ के लिए
दवाई भी है ज़िंदगी...!!

जहाँ किसान के लिए
खेत है ज़िंदगी,
वहीं बेघर के लिए 
घर भी है ज़िंदगी...!!

मजबूरी में बनते ताकत
बिगड़ते हालातों का
हिसाब भी है ज़िंदगी,
संघर्ष ही तो इसका सार है
बीन इसके निराधार है ज़िंदगी...!!

मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)

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