कहीं फर्श तो कहीं रंगे मन - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला

होली की वह मधुमय बेला,
बीत गई कुछ छोड़ निशानी।

गली मोहल्ले रंग रंग है,
रंगा हुआ नाली का पानी।

दीवारों पर रंग जमा है,
चेहरो पर भी रंग रवानी।

कहीं फ़र्श तो कहीं रंगे मन,
अलग अलग कर रहे बयानी।

होली तो हे! मीत यही बस,
याद दिलाने आती है।

नफ़रत छोड़ो प्यार निभाओ,
दुनिया किसकी थाती है।

होली की वो मधुमय बेला,
बीत गई कुछ छोड़ निशानी।

गली मोहल्ले रंग रंग है,
रंगा हुआ नाली का पानी।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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