परिधान - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

हंसवाहिनी विधिप्रिये, श्वेताम्बर परिधान।
शारद सरसिज शारदे, मानवीय दे ज्ञान।।

सिहरे तन परिधान लद, आलस कारज देर।
ले चपेट निज वृद्धजन, थिथुरन में हो ढेर।।

लौटे मुख मुस्कान भी, मिले ज्ञान आलोक।
ढँके गात्र परिधान में, मिले गेह हर शोक।।

काव्य कामिनी में भरे, रंगनाथ कविरंग।
नवरस के परिधान से, बने कीर्ति तरंग।।

नवयौवन लावण्यता, वसुधाधर मुस्कान।
नीलाम्बर तारक खचित, वासन्तिक परिधान।।

नववधू बन नवरूप में, लज्जा नव परिधान।
नवगृह जन परिवेश में, नव जीवन आधान।।

होठों की यह लालिमा, क़ातिल है मुस्कान।
मृगनयनी सी चंचला, सुन्दरतम परिधान।।

सज सोलह शृङ़्गार तनु, चारु पहन परिधान।
विदा बहन ससुराल से, चली भातृ सम्मान।।

शिष्ट सभ्य परिधान से, निखरे अति व्यक्तित्व।
प्रतिमानक बन कलियुगी, सुख वैभव अस्तित्व।।

सत्य धर्म आचार जग, मानवता परिधान।
नीति प्रीति पथ त्याग ही, देता यश सम्मान।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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