हे मतदाता - कविता - अंकुर सिंह

हे मतदाता!, हे राष्ट्रनिर्माता!
दारू मुर्गे पर ना बिक जाना।
प्रत्याशी को समझ परख कर,
मतदान ज़रूर तुम कर आना।।

लोकतंत्र के तुम हो आधार,
वोट तुम्हारे विकास सूत्रधार।
जाति धर्म से ऊपर उठ कर,
मतदान ज़रूर तुम कर आना।।

हे भाग्य विधाता!, हे मतदाता!
अबकी फिर चूक ना जाना।
लोभ भय में ना फँसकर तुम,
ईमानदार प्रत्याशी चुनकर लाना।।

हे मतदाता तुम भी,
अपनी ताकत को पहचानो।
नेता तुम्हारा पढ़ा लिखा हो,
ऐसा अबकी तुम चुन डालो।।

हे मतदाता!, हे राष्ट्रनिर्माता!
तुम्हारा मत है बड़ा अनमोल।
दारू, मुर्गे के लालच में,
अबकी ना दो इसे फिर तोल।।

अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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