सुकुमा की धरती हुई, आज रक्त से लाल।
परिजन सारे रो रहे, होकर के बेहाल।।
होकर के बेहाल, तड़पते घायल सैनिक।
ज़ालिम चलते चाल, हया भी आज गई बिक।।
ममता कहती आज, लगी जन-जन को सदमा।
अमर हुए जाँबाज़, व्यथित अतिशय है सुकुमा।।
डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)