वीरगाथा शहीदों की- कविता - मिथलेश वर्मा

देश सेवा इबादत हो गया,
अब हद-ए-शहादत हो गया।
श्रद्धांजलि सबकी आदत हो गई।।

चिराग़ था किसी घर का,
देखो आज खो गया।
भारती की सेवा करते,
क़ुर्बान आज हो गया।।

दुश्मनो से लड़ते है,
देश सेवा करते है।
परिवार अपना छोड़कर,
जंग-ए-मैदान में उतरते हैं।।

न डरते है, बारूद से,
न कदम, पिछे करते है।
गोलियों का सामना,
फ़ौलादी सीना करते है।।

पहाड़ हो, या ढलान हो,
जाते वीरो की टोलियाँ।
जवान खेलते होलियाँ,
सीने में खा के गोलियाँ।।

देश पर क़ुर्बान है,
कितनी ही जवानीयाँ।
इनकी वीरगाथा के,
कितनी है कहानियाँ।।

कब तक वीर सपूत यूँ,
अपना शिश को कटाएगा।
लाल आतंक कब तक
माँ भारती को रंगते जाएगा।।

वीरो के पद्चिन्हों पर,
नवयुवा चलते जाएगा।
देश सेवा का धर्म,
हर युवा निभाएगा।।
 
शहीदों के शहादत को,
यूँ कौन भुल पाएगा।
आने वाला युग भी,
गाथाएंँ इनका गाएगा।।

मिथलेश वर्मा - बलौदाबाजार (छत्तीसगढ़)

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