सतत विकास में कहाँ हैं हमारा समाज - आलेख - परमजीत कुमार चौधरी

हमारा देश और समाज निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है और हमने काफी सारे उपलब्धियां भी हासिल की है। परंतु क्या हमारा समाज सतत विकास की ओर अग्रसर है? यह हमें अपने आप से, समाज से और सरकार से पूछना होगा।

संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा निर्धारित सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य यानी मिलेनियम डेवलपमेंट गोल, जोकि निर्धारित किया गया था साल 2000 ईस्वी में जिसमें आठ वैश्विक लक्ष्य निर्धारित था जिसे साल 2015 तक प्राप्त करनी थी, अधिकांश देश असफल रहा इसमें हमारे देश भारत का नाम प्रमुखता से आता है विश्व की करीब 17 पर्सेंट आबादी वाला देश भारत, इस लक्ष्य को प्राप्त करने में काफ़ी पीछे रहा जैसे अति गऱीबी को ख़त्म करना, प्राथमिक शिक्षा को सामान्य करना, एचआईवी/एड्स, मलेरिया जैसे गंभीर बीमारियों पर काबू पाना इत्यादि। जोकि पूर्णरूपेण पूरा नहीं हो पाया अतः यूएन द्वारा साल 2015 में निर्धारित सतत विकास लक्ष्य यानी सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स जोकि 2030 तक हासिल कर लेनी है उस में मुख्य रूप से 17 लक्ष्यों को लिया गया, जोकि मानव के आधारभूत विकास के साथ-साथ पर्यावरण के संरक्षण की भी बातें करती है परंतु सबसे बुनियादी सवाल यह है कि क्या हमारी सरकार समाज को इसके प्रति जागरूक कर पाई है? जवाब है, नहीं!

मानव विकास और पर्यावरण संरक्षण के नाम पर करोड़ों खर्च करने वाली सरकार अपने मूल उद्देश्य से कोसों दूर रहे। इसका सबूत है मानव विकास सूचकांक में 189 देशों की सूची में हम 131 वे स्थान पर हैं। हम पर्यावरण को अपनी संस्कृति मानकर उसे पूजने वाले लोग उसी पूजन सामग्री के अपशिष्ट और प्लास्टिक को धड़ल्ले से नदी और जलाशयों में प्रवाहित कर देते हैं! क्या हमारी संस्कृति ऐसी ही थी या हम अंधविश्वासी या पथभ्रष्ट हो गए? यह हमें अपने आप से और समाज से पूछना होगा।

परमजीत कुमार चौधरी - मुजफ्फरपुर (बिहार)

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