वो कौन है जो राह दिखाता चला गया।
सोए हुए थे हम तो जगाता चला गया।।
बेदर्द ज़माने नें मुझे ग़म ही ग़म दिया,
हर दर्द को वो मेरे मिटाता चला गया।
हमदर्द है हमारा बनकर के फ़रिश्ता,
इंसानियत की राह बताता चला गया।
उसका गुनाह माफ़ यहाँ हो गया देखो,
जो दिल को आईने में दिखाता चला गया।
गर साथ है मुक़द्दर तो कोई ग़म नहीं,
पाया था जो यहाँ सब लुटाता चला गया।
आए हैं हम यहाँ पर दुख दर्द बाँटने,
यह सोचकर सभी को हँसाता चला गया।
तारीफ़ क्या करूँ मैं अपने नसीब की,
मैं हर क़दम पे दोस्त बनाता चला गया।
आलोक रंजन इंदौरवी - इन्दौर (मध्यप्रदेश)