ऐसी थी बचपन की याद।
चूल्हे की रोटी लगती थी स्वाद।।
गऱीबी का भी नहीं,
होता था अहसास।
माँ की ममता,
पिता का प्यार था पास।।
दादाजी की परियों वाली कहानी।
समय पर आज भी गूँजती वाणी।।
छोटे बड़े भाइयों से खूब लड़ते।
सभी का आदर सम्मान करते।।
गाँव में ज़्यादातर ग़रीब थे।
सुख दुख में सभी बड़े करीब थे।।
आँधी आने पर,
पन्नी के पैराशूट उड़ाते।
बारिश के पानी में,
काग़ज़ की नाव बहाते।।
वो पल कितने मासूम,
वो ज़िंदगी कितनी हसीन थी।
वो सपनों का आसमाँ,
ख़्वाबों की ज़मीन थी।।
मिट्टी में खूब खेलते,
धूमिल हो जाता तन।
घर पर माँ डाँटेगी,
सोचते मन ही मन।।
आज दिल सोचता,
है मन ही मन।
कोई लौटा दे हमें,
वो प्यारा बचपन।।
गुड्डे गुड़िया व खिलौने,
को हर रोज़ सजाना।
न जाने कहाँ खो गया,
वह मनमौजी ज़माना।।
समय सिंह जौल - दिल्ली