नारी तुम महान हो - कविता - विनय विश्वा

धारणी धरा प्रकृति यौवन,
तुम वात्सल्य की पारावार हो।
नारी तुम महान हो।।
कभी गृहणी कभी कर्मस्वरुपा,
नये नये तेरे रूप अनूपा,
कभी तनुजा कभी माँ है रुपा,
परिणय बन्ध तू स्त्री स्वरुपा।
नारी तुम महान हो।
नारी तुम महान हो।।

विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)

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