हैवानियत हावी है अब इंसानियत पर।
तरस खाता नही है कोई मासूमियत पर।।
भूल से भरोसा मत करना इस जहां मे,
बैठा हो ज़ालिम चाहे जिस हैसियत पर।
हालात अजीब है औरत की आबरु का,
शक होता है, हर किसी की नियत पर।
ख़ौफ़ से गुज़रती है साँसे, देखो उसकी,
कोई आँसू बहाता नही है अहमियत पर।
माँ-बहन, बहू-बेटी है कई रुप इसके,
आओ गर्व करे सब, ऐसी ख़ासियत पर।
हे! बंदे बदल जा, इल्तिजा है "जैदि" की,
है वक़्त अभी भी आ जा असलियत पर।
एल. सी. जैदिया "जैदि" - बीकानेर (राजस्थान)