संदेश
चाहत - कविता - गणेश दत्त जोशी
तेरी ख़ुशबू से पल-पल महकता रहा है मेरा, भला और क्या मैं चाहूँ? हर क्षण हर पल बस तेरा ही साथ माँगूँ। तू ही तो बसा है मेरे रोम-रोम में, …
साहित्य - कविता - ज्योति
साहित्य का स्वर अनंत गहराई से निकलता है, विचारों का संग्रह, भावों का समाहार है। कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास की उच्चता है, साहित्यिक रच…
छाया बिन काया - कविता - शेखर कुमार रंजन
काया को छाया से प्यार हो गया, आँखों से आँखें, चार हो गया। छाया चली गई छोड़कर एक दिन, तब से ही काया बीमार हो गया। काया, छाया को कभी भुल …
बचके रहिए - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
हादसों का शहर है ये बचके रहिए। कामना है आसमानी हो गई। और फूलों की जवानी हो गई॥ जीवन में है नदी की धार सा बहिए। इंसानियत सूख के काँटा ह…
साला का महत्व - कविता - विजय कुमार सिन्हा
जिस घर में मेरा विवाह तय हुआ उस घर में पहले से था एक जमाई रिश्ते में था वह मेरा भाई। एक दिन मैंने उससे कहा– तुम तो अनुभवी हो ससुराल …
नींद कहाँ आती है - कविता - प्रमोद कुमार
अकेला मन उदास हो, और सपनों का दास हो। नींद कहाँ आती है! ख़ूबसूरत जीवनसाथी हो, पर हरदम जज़्बाती हो। नींद कहाँ आती है! घर में बेटी जवान हो…
भक्त और भगवान् - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
अनुपम मधुरिम अरुणिमा, शुभ प्रभात उत्थान। पूजन वन्दन शुद्ध मन, भक्त और भगवान्॥ खिले कुसुम सरसिज सरसि, कुसुमाकर वरदान। भक्ति भक्त चित…
महावीर सूर्यपुत्र कर्ण - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
उठो पार्थ प्रहार करो, ये सूरज ढलने वाला है, क्षणिक तनिक तुम देर किए, तो रथ निकलने वाला है। यह गांडीव धरा रह जाएगा, जब विजय धनुष टकारा…
मृग मरीचिका - कविता - सुनील शर्मा 'सारथी'
पानी से पानी पर पानी लिख रहा हूँ, बीते ज़माने की कहानी लिख रहा हूँ, बहते हुए वक़्त की रवानी लिख रहा हूँ, जो खो गई है वक़्त की रफ़्तार में…
मुझे ख़बर ही नहीं - कविता - राकेश कुशवाहा राही
ये ज़माना है तुम्हारा हर ख़ुशी है तुम्हारी लोग करते है बातें बहुत सी यहाँ मुझे ख़बर ही नहीं मैं बेख़बर ही सही। बादल भी है बेवफ़ा सा ज़र…
नमक - कहानी - कुमुद शर्मा 'काशवी'
नलिनी एक सुघड़, सुशील घर व बाहर के कामों में पारंगत एक समझदार पढ़ी लिखी संयुक्त परिवार में पली बढ़ी लड़की थी। परिवार भी ऐसा जहाँ सभी स…
फ़र्क़ तो पड़ता है - नज़्म - मनोरंजन भारती
तेरा साथ ना होना तुमसे बात ना होना, बेज़ुबाँ हर रातों में कच्ची नींद में सोना, मन बाबरा किसी भी ओर चल पड़ता है, तेरा संग होना ना होना…
क्या यही था, दोष मेरा? - कविता - सौरभ तिवारी 'सरस्'
निष्कामना की प्रीति हिय में धार कर, और विषमताओं के बंधन पार कर, प्रिय तेरी मुस्कान था परितोष मेरा, क्या यही था, दोष मेरा? इक कहानी जिस…
चलो इक बार फिर से - कविता - ऊर्मि शर्मा
चलो इक बार फिर से अजनबी रास्तों पे चुपचाप चले, अपनी ख़ामोशीयों में गुम ख़ुद को दोहरातें समाज के तोड़ बंधन-दीवारें चलो अंतहीन दूरियों…
प्रिय संविधान पढ़ लेना तुम - कविता - रमाकान्त चौधरी
भारत में कैसे रहना है, कैसे कब क्या कहना है, ज़ुल्म भला क्यों सहना है, हक़ के लिए लड़ लेना तुम। प्रिय संविधान पढ़ लेना तुम॥ राष्ट्र क…
ग्रीष्म - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
टपक रहा है ताप सूर्य का, धरती आग उगलती है। लपट फैंकती हवा मचलती, पोखर तप्त उबलती है॥ दिन मे आँच रात में अधबुझ, दोपहरी अंगारों सी। अर्द…
माँ - कविता - संजय राजभर 'समित'
एक दिन मैं अपनी माँ से पूछा “माँ मेरे न रहने पर तेरी बहू कैसा व्यवहार करती है?” माँ चुप थी तब मैं सब समझ गया माँ यदि सच बोलेगी …
माँ - कविता - गणेश दत्त जोशी
माँ तो माँ है, माँ का कोई नहीं सानी, माँ मिठास है मिश्री की, माँ है गुड़ धानी। माँ से ममता, माँ से क्षमता, माँ ही तो है वो जो सबसे पहल…
माँ का आँचल - गीत - महेश कुमार हरियाणवी
थाम के दुःख का दामन, जो दुनिया दिखलाती हैं। सच, माँ तो केवल माँ है, हर दुखड़े हर जाती हैं॥ जिस आँचल के दूध तले, इस जीवन की आस पले। ला, …
अगर साथ देते जो - गीत - प्रमोद कुमार
अगर साथ देते जो, तुम भी हमारे, तो रख देते क़दमों में, दुनिया तुम्हारे। सरल सुखदायी, सुन्दर सुशील हो, निर्मल हो पावन ज्यूँ, गंगा के धारे…
प्यारी माँ - कविता - मेहा अनमोल दुबे
प्यारी माँ! तुम बहुत याद आती हो, जब दिन ढलता है, जब नवरात्र का दिपक जलता है, जब साबुदाने खिचड़ी कि ख़ुशबू उडती है, जब हृदय मे पीड़ा होती …
मैं हर महीने भीग जाती हूँ - कविता - सुधीरा
कुदरत के नियम को मैं अपनाती हूँ, हर बार दर्द में और ज़्यादा जीना सीख जाती हूँ, मैं हर महीने भीग जाती हूँ। लाल रंग का मेरी ज़िंदगी से गहर…
कालजयी निरंतरता - कविता - अनिल कुमार केसरी
ज़िंदगी बड़ी तेज़ दौड़ती है; निरंतर गतिमान वक़्त की रफ़्तार से भागती रहती है। बदलाव ज़िंदगी का अटूट हिस्सा है; और बदलते रहना ही ज़िंदगी …
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