चलो इक बार फिर से
अजनबी रास्तों पे
चुपचाप चले,
अपनी ख़ामोशीयों में गुम
ख़ुद को दोहरातें
समाज के तोड़ बंधन-दीवारें
चलो अंतहीन दूरियों तक
साथ चले,
कोई शिकवा-शिकायत ना करे,
चलो अजनबी से बन के
पहली मुलाक़ात सा
रिश्ता निभाए,
दोहराऊ मैं इक बार वो ही
जब तुम अजनबी थे।
आख़िरी बार दिल के तार पे
फिर से कोई सरगम
कोई मदहोश धुन
मौन में गुनगुनाऊँ।
ऊर्मि शर्मा - मुंबई (महाराष्ट्र)