साला का महत्व - कविता - विजय कुमार सिन्हा

जिस घर में मेरा विवाह तय हुआ
उस घर में पहले से था एक जमाई  
रिश्ते में था वह मेरा भाई।
एक दिन मैंने उससे कहा–
तुम तो अनुभवी हो
ससुराल क्या है?
यह तो बताओ। 
उसकी ज्ञान भरी बातों का वर्णन कर रहा हूँ। 
उसने कहा, जीवन में अगर रहना
है ख़ुश 
तो मुझे सरगम का पहला सुर क्या है? बताओ!
मैंने कहा 'स'
हँसते हुए उसने कहा
सरगम के पहले सुर में ही समाई है
विवाह पश्चात ज़िंदगी की कहानी।
विस्तार से सुनो मेरी ज़ुबानी। 
'स' से सास, ससुर, साला, साली, सरहज
ये जहाँ इकट्ठे रह्ते हैं
उसे ही ससुराल कहते हैं।
यहाँ तो हर कोई प्यारा होता है पर
जो सबसे ज़्यादा प्यारा होता है
वह होता है पत्नी का भाई
जिसको साला कहते हैं।
यह शब्द कोई हल्का शब्द नहीं है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार
समुद्र मंथन में जो चौदह दिव्य रत्न मिले थे
उसमें लक्ष्मी जी के बाद जो निकला
वह 'शाला' शंख था। 
समुद्र मंथन में लगे सब लोग 
एक साथ बोले
यह तो लक्ष्मी जी का भाई
साला शंख आया है
उस शंख को विष्णु ने रखा अपने संग।
                             
तभी से यह 'साला' शब्द
प्रचलित हो गया।
पत्नी जिसे घर की लक्ष्मी भी कहते हैं
उसके भाई को साला कहते हैं।
पत्नी को ख़ुश रखना है 
घर में सुखमय जीवन जीना है,
तो साले पर ख़ूब प्यार लुटाओ।
घर में हर दिन अच्छे-अच्छे व्यंजन खाने हों
तो साले का गुण गाओ।
मिलेंगे गरमा गर्म पकौड़े और चाय।

अपने भाई की ज़िंदगी के
ख़ुशहाली का राज जान 
मैं भी उसी अनुसार 
जीवन जीना आरंभ किया।
तो आज सुखमय जीवन जी रहा।
सुखमय जीवन जीने का है
एक हीं मंत्र
अपने सभी साले का
करो भरपूर सम्मान।
तभी सदैव रहोगे ख़ुशहाल। 


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