मुझे ख़बर ही नहीं - कविता - राकेश कुशवाहा राही

ये ज़माना है तुम्हारा 
हर ख़ुशी है तुम्हारी  
लोग करते है बातें बहुत सी यहाँ 
मुझे ख़बर ही नहीं मैं बेख़बर ही सही। 

बादल भी है बेवफ़ा सा ज़रा
तप रहा है शहर आग सा मेरा
हो रही है बारिश तुम्हारे शहर में 
मुझे ख़बर ही नहीं मैं बेख़बर ही सही।

बड़े चर्चे है तुम्हारे
शहर के अख़बारों में 
लोग पूछते है मुझसे ख़बर है तुम्हे
मुझे ख़बर ही नहीं मैं बेख़बर ही सही। 

जब तुम आए मेरे शहर में 
लोग आने लगे मेरे नज़र में 
मैं कैसे बता पाऊँगा तुम्हारा पता 
मुझे ख़बर ही नहीं मैं बेख़बर ही सही। 

राकेश कुशवाहा राही - ग़ाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)

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