राकेश कुशवाहा राही - ग़ाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)
मुझे ख़बर ही नहीं - कविता - राकेश कुशवाहा राही
गुरुवार, मई 18, 2023
ये ज़माना है तुम्हारा
हर ख़ुशी है तुम्हारी
लोग करते है बातें बहुत सी यहाँ
मुझे ख़बर ही नहीं मैं बेख़बर ही सही।
बादल भी है बेवफ़ा सा ज़रा
तप रहा है शहर आग सा मेरा
हो रही है बारिश तुम्हारे शहर में
मुझे ख़बर ही नहीं मैं बेख़बर ही सही।
बड़े चर्चे है तुम्हारे
शहर के अख़बारों में
लोग पूछते है मुझसे ख़बर है तुम्हे
मुझे ख़बर ही नहीं मैं बेख़बर ही सही।
जब तुम आए मेरे शहर में
लोग आने लगे मेरे नज़र में
मैं कैसे बता पाऊँगा तुम्हारा पता
मुझे ख़बर ही नहीं मैं बेख़बर ही सही।
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