नमक - कहानी - कुमुद शर्मा 'काशवी'

नलिनी एक सुघड़, सुशील घर व बाहर के कामों में पारंगत एक समझदार पढ़ी लिखी संयुक्त परिवार में पली बढ़ी लड़की थी। परिवार भी ऐसा जहाँ सभी सुख दुःख बाटते हुए ख़ुशी से रहते। नलिनी घर की बड़ी बेटी होने के कारण सबकी लाडली थी जो अब शादी लायक़ भी हो गई थी। दिन भर घर उसकी मीठी बोली से चहका करता और उसके हाथों से बने खाने का कोई स्वाद चख ले तो उँगलियाँ चाटता रह जाए।
      
नलिनी की बुआजी उसके लिए रिश्ता लेकर आई, सभी को परिवार और नरेन पसंद आया, चार भाइयों में नरेन परिवार का सबसे छोटा बेटा था, कुछ ही दिनों में अच्छा सा मुहूर्त देख शादी तय कर दी गई। विदा होते वक़्त नलिनी को सबसे हिदायत मिली "सबको उचित मान सम्मान देना और तो तुम अपने स्वभाव से सबका मन जीत ही लोगी"।

ससुराल पहुँचने पर सभी ने बड़े प्यार से उसका स्वागत किया, उसकी पहली रसोई भी सबको पसंद आई, आती क्यूँ नहीं खाना जो इतना स्वादिष्ट बनाया था नलिनी ने। हफ़्ते भर के अंदर सारे मेहमान भी चले गए। उसकी दोनों जेठानियाँ रश्मि और सुजाता भी अपने पति और बच्चों के साथ जा चुके थे क्योंकि नरेन के दोनों मझले भाई अपनी अपनी जॉब के चलते दूसरे शहरो में रहते थे।

नलिनी अपने सास-ससुर, नरेन और नरेन के बडे़ भाई सोमेश  उनकी पत्नी मेघा और बच्चों के साथ उनके पैतृक घर में रह रही थी। नलिनी अपने मिलनसार स्वभाव के कारण सबका मन जीत चुकी थी, घर के कामो में भी हाथ बटाने लगी। शुरू-शुरू में नलिनी की सास उसके हर काम पर नज़र रखा करती, जब उन्हें तसल्ली हो गई कि नलिनी घर सम्भाल लेगी तो वो भी थोडा़ निश्चिंत हुई। ऐसे तो उसकी तीनों जेठानियाँ एक से बढ़कर एक होशियार थी। पर नलिनी की सास हमेशा बड़ी बहू मेघा की तारीफ़ के कसीदे पढा़ करती और पता नहीं क्यों उसकी मझली जेठानियाँ उसे खाने में नमक का हाथ तंग रखने की सलाह दिया करती।

ख़ैर! उसने जानना ज़रूरी नहीं समझा, दिन बीतते गए और सभी नलिनी की तारीफ़ करते नहीं थकते, उसकी दोनों मझली जेठानियाँ भी उसे फ़ोन पर सलाह मशवरा देती रहती। उसके ससुरजी डायबिटीज और बीपी के पेशेंट थे और रिटायर्ड भी थे, जो ज़्यादातर समय घर पर ही रहते। उसकी जेठानी मेघा भी नलिनी के साथ अच्छा व्यवहार जताती, हमेशा यही कहती "नलिनी तुम खाने का काम देख लिया करो..., तुम खाना अच्छा बनाती हो"।

इन दिनों जब भी नलिनी खाना बनाती हमेशा खाने में नमक ज़्यादा हो जाता, ज़्यादा भी इतना कि खाने का एक कौर मुँह में न डाला जाए ऊपर से उसके ससुर बीमार आदमी जिनके लिए ज़्यादा नमक ज़हर समान था उन्हें समय पर खाना भी चाहिए होता,ज ब भी थाली लगाई जाती नमक ज़्यादा होने की वजह से उन्हें बिना खाए ही उठना पड़ता। उनकी दवाइयाँ भी समय पर नहीं ली जा रही थी।
     
नलिनी को कुछ समझ नहीं आ रहा था हमेशा यही सोचती रहती कि "मैं खाने में हमेशा नमक कम ही डालती हूँ पर इतना ज़्यादा कैसे हो जाता है"। पहले खाना चख भी नहीं सकते ठाकुरजी को भोग जो लगाना होता है। ये तो रोज़ की बात हो गई थी आजकल, पर उसने ध्यान देना शुरू किया कि ऐसे तो उसकी जेठानी मेघा खाने के काम को हाथ न लगाती, पर जैसे ही नमक ज़्यादा होने की वजह से सब अपनी अपनी थाली सरका उठ खड़े होते... मेघा भागी भागी आती "अरे रूकिए आपलोग, मैं कुछ अच्छा सा बना कर लाती हूँ... लगता है आजकल नलिनी खाना बनाना भूल गई है"।

नलिनी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे और क्या न करे, वो अपने आप को दोषी मानने लगी थी कि शायद वह ही गैर ज़िम्मेदार हो रही है। पर एक दिन उसने कुछ सोच विचार करते हुए अपनी बनाई हुई दाल में से थोड़ी दाल निकाल कर छुपा दी, जब खाना परोसा गया तो रोज़ की तरह ही खाने में नमक तेज़ था। जब उसने अपनी छुपाई हुई दाल चखी उसमें नमक बिल्कुल सही था बल्कि कम ही था, उसने ये बात अपनी सास से कही पर सास ने उससे कुछ न कहा। उसने देखा कुछ देर बाद सास मेघा भाभी के कमरे की तरफ़ जा रही है वो भी उनके पीछे हो ली और दरवाज़े पर खड़ी होकर उनकी बातें सुनने लगी।
           
सास बड़ी बहू मेघा से कह रही थी "बहू तुम्हें नमक इतना पसंद क्यूँ है? क्यूँ तुम खाने में नमक घोलकर रिश्तों में भी कड़वाहट घोल रही हो? मैं तुम्हारी तारीफ़ करते नहीं थकती कि तुम सबसे समझदार हो पर शायद मैं ही ग़लत थी। तुम अब तक नहीं सुधरी... मझली बहुओं के साथ भी तुम कुछ न कुछ शैतानियाँ करती रहती थी, उनके पति तो बाहर काम करते थे सो घर की शांति बनी रहे इसलिए उन्हें बेटों के साथ भेज दिया कि वहीं घर बसा कर शांति से रहे। तुम्हें क्या लगा हमें कुछ पता नहीं है। मुँह से मीठा बोल अंदर से जड़े काटती हो, तुमने अपने बीमार ससुर तक के बारे में नहीं सोचा। तुम्हें किस बात का डर है? क्या हमने तुम्हें औरों से अलग समझा है। बेचारी नलिनी समझदार है जो सीधे तुझसे लड़ने के बजाय उसने मुझे बताना सही समझा"।

"नहीं मम्मीजी! मुझे माफ़ कर दीजिए। आप इनसे कुछ मत कहिएगा। वो मुझे माफ़ नहीं करेंगे, मैं अपनी सहेलियों की बातों में आ गई थी। हमारा प्रेम विवाह हुआ था ना और सभी ने मुझसे यही कहा कि तुम्हें ससुराल में कभी वो जगह नहीं मिलेगी जो बाक़ी बहुओं को मिलती है। मैं बाक़ियों को बुरा साबित कर आप लोगों की नज़रो में अच्छी बनना चाहती थी। न जाने इस घुटन में मैं क्या कर बैठी, मैं शर्मिंदा हूँ"।

"बहू ये क्या मनगढ़ंत बातें कह रही हो... सीधे-सीधे क्यूँ नहीं कहती कि छोटी बहुओं के आने से तुम्हें अपनी बड़ी बहू होने की सत्ता जाने का इतना डर हो गया कि तुमने हमारे विश्वास को ही खो दिया। बड़ा इंसान अपने ओहदे से नहीं अपने कर्म और व्यवहार से होता है। ख़ुद को ऊपर उठाने के लिए दूसरों को नीचे गिराना कहाँ तक सही है, छोटी बहुओं को घर में उनका मान सम्मान दिलवाने के बजाय तुम उन्हें लापरवाह साबित करती रही। हमें बताया तो होता कभी हमारे प्यार में कोई भेदभाव देखा है तूमने। मैनें सोचा तू बचपने में ग़लतियाँ कर रही हैं समय रहते सीख जाओगी, पर कोई बात नहीं देर आए दुरुस्त आए"।

जब नलिनी ने देखा उसकी सास कमरे से बाहर आ रही है तो वो भी किचन की तरफ़ जा अपने काम में लग गई। जब सास ने बात संभाल ही ली थी तो उसने बात को आगे बढ़ाना सही नहीं समझा क्योंकि उसने अपने मायके में सबको प्यार से मिलजुल कर रहते ही देखा था और ऐसे जताया जैसे कि उसे कुछ पता ही नहीं।

इस तरह की बातें हर किसी के साथ हो सकती है, चाहे घर हो या बाहर और आजकल के प्रतिस्पर्द्धी युग में तो बिल्कुल हो सकती है। हर किसी के बीच यहाँ सबसे आगे निकलने की होड़ में या अपनी सत्ता क़ायम रखने की जद्दोजहद में अपने सहकर्मियों से या रिश्तों में ईर्ष्या की भावना पनपना आम बात है। पर क्या ये मापदंड उचित है? कभी भी कोई भी किसी की बातों में आ ग़लतियाँ कर बैठता हैं, पर अपनी ग़लती सुधार आगे की सीख लेने में ही भलाई है। माना बिना नमक के हमारे खाने का ज़ायक़ा बिगड़ सकता है, पर हमें नमक की तरह कड़वाहट नहीं बल्कि रिश्तों में चीनी की तरह मिठास घोलनी चाहिए।

कुमुद शर्मा 'काशवी' - गुवाहाटी (असम)

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