महावीर सूर्यपुत्र कर्ण - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव

उठो पार्थ प्रहार करो,
ये सूरज ढलने वाला है,
क्षणिक तनिक तुम देर किए,
तो रथ निकलने वाला है।

यह गांडीव धरा रह जाएगा, 
जब विजय धनुष टकाराएगा,
बाणों की बौछारों से उसकी,
यह ब्रह्मांड पूरा हिल जाएगा।

वह महावीर है, महारथी है, 
वो ना रुकने वाला है,
वह दिग विजेता सूर्यपुत्र है,
वह ना झुकने वाला है।

उठो पार्थ का प्रहार करो,
सूरज ढलने वाला है,
क्षणिक तनिक तुम देर किए,
तो रथ निकलने वाला है।

ना साथ तुम्हारे मैं होता, 
तो धूल तुम्हें वो चखा देता,
ब्रह्मास्त्र के तुम्हारे, पीछे
ब्रह्मांड अस्त्र चला देता।

समक्ष न उसके तुम टिक पाते, 
वह ऐसा अस्त्र चलाता है,
घबरातें हैं देवराज भी,
नाम उसका जब आता है।

सारथी बन में बैठा हूँ, 
ऊपर पवन पुत्र विराजे हैं, 
रथ को फिर भी पीछे करता, 
वह विजय धनुष को साजे है।

वह सौम्य पुरुष है, दानवीर है,
वो परशुराम शिष्य मतवाला,
कोई ना उसको रोक सका, 
अब ना वो रुकने वाला है।

उठो पार्थ प्रहार करो, 
ये सूरज ढलने वाला है, 
क्षणिक तनिक तुम देर किए,
तो रथ निकलने वाला है।

चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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