मृग मरीचिका - कविता - सुनील शर्मा 'सारथी'

पानी से पानी पर पानी लिख रहा हूँ,
बीते ज़माने की कहानी लिख रहा हूँ,
बहते हुए वक़्त की रवानी लिख रहा हूँ,
जो खो गई है वक़्त की रफ़्तार में,
मैं अपनी ही जवानी की कहानी लिख रहा हूँ।

समझ में न आए उस खाई की गहराई सी,
उन्मुक्त नदी की बहती कलकल ध्वनि सी,
रावण की विद्वता और विभीषण की चतुराई सी,
हर रोज़ नए सपने दिखाने वाली इस–
स्वप्निल ज़िंदगी की कहानी लिख रहा हूँ।

सुनील शर्मा 'सारथी' - जालना (महाराष्ट्र)

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