प्रिय संविधान पढ़ लेना तुम - कविता - रमाकान्त चौधरी

भारत में कैसे रहना है, 
कैसे कब क्या कहना है, 
ज़ुल्म भला क्यों सहना है, 
हक़ के लिए लड़ लेना तुम।
प्रिय संविधान पढ़ लेना तुम॥

राष्ट्र का धर्म निभाने को, 
सबको सम्मान दिलाने को, 
भटके को राह दिखाने को, 
अधिकारों को गुन लेना तुम।
प्रिय संविधान पढ़ लेना तुम॥

सम्मान सदा देश का करना,
देश की ख़ातिर जीना मरना,
आपस में तुम कभी न लड़ना,
कर्तव्यों को चुन लेना तुम।
प्रिय संविधान पढ़ लेना तुम॥

जीवन के हर क्षण हर पल को,
जीना आज ही अपने कल को,
भूल न जाना अपने बल को,
निर्बल का साहस बन लेना तुम।
प्रिय संविधान पढ़ लेना तुम॥

सब धर्मों का सार है इसमें,
ख़ुशियों का संसार है इसमें,
जीने का अधिकार है इसमें,
नियम इसी के चल लेना तुम।
प्रिय संविधान पढ़ लेना तुम॥

संकट में जब फँस जाना,
इक पल को मत घबराना,
इसको ही हथियार बनाना,
इसके बल बढ़ लेना तुम।
प्रिय संविधान पढ़ लेना तुम॥

बिगड़े गर संबंध किसी से,
टूटे गर अनुबंध किसी से,
संभले न प्रबंध किसी से,
मिल चर्चा कर लेना तुम।
प्रिय संविधान पढ़ लेना तुम॥

रमाकांत चौधरी - लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)

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